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शाठ तरह का हो सकता है उसी प्रकार विधवाविवाह भी पाठ तरह का दानकता है।
आक्षेप (झ)-सम्यग्दृष्टि जीव में गग दंप को उत्स्टता का क्षयोपशम हो गया है। उम के वन निमय न मही, परन्तु म्बस्पाचरण चारित्र तो है, जो समार से भयभीत, मद्यमांम श्रादि से विरक्त, विधवाविवाह शादि गग-प्रवृति से पचाना है । यदि उस स्वरपाचरण चारित्र न माना जाय तो घार दुनिया भर के सभी रो कर्म करके भी सम्यमयी बना रहेगा।
समाधान-म्वरूपाचरण तो नारक्यिों में भी होता है, पॉचों पाप करने वालों के भी होता है, कृपालेण्या वालों के भी होता है। तब विधवाविवाह से ही उम्प का पया विगंध हैं । सम्यग्दर्शन, भेट विज्ञान, स्वरूपाचरण चारित्र, ये महनर है ? इसलिये जो बात एक के लिए कही गई है वही तीनों लिये समझना चाहिये । अनन्तानुबन्धी उदय क्षय से स्व. रूपाचरण होता है। इस विषय में लेन के प्रारम्भ में पानप नम्बर '' का समाधान देखना चाहिये।
प्राक्षेप (न)-सानवे नरक में सम्यस्त्व नष्ट न होने की बात आप ने कहाँ से लिखी ?
समाधान-इसका समाधान पहिले कर चुके है। देवी आक्षेप नम्वर 'ई' का समाधान।
आक्षेप (2)-सम्यग्दृष्टि जीव पञ्च पापोपसेवी नहीं होता, किन्तु उपभोगी होता है अर्थात् उसको रुचिपूर्वक पञ्च पापों में प्रवृत्ति नहीं होती।"पाप तो सदा सर्वथा घोर पाप. बन्धन का ही कारण है । फिर तो सम्यच्ची को भी घोर पाप बन्ध सिद्ध हो जायगा और सम्यक्त्वीको बन्धका होना करने पर अमृतचन्द्र सूरि के "जिस दृष्टि से सम्यग्दृष्टि है उस दृष्टि से बन्ध नहीं होता" इस वाक्य का क्या अर्थ होगा?
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