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(१५ ) भ्याल्यानं नटेटिनव्यं (भाप्य )। वार्निक में रहोभ्याख्यान' का अर्थ किया गया है किसी की गुप्त पान प्रगट करना' परन्तु भाज्य में यदुलना की अपेक्षा लिखा गया है कि 'स्त्री पुरुप ने जो एकांत में कार्य किया हो उसका प्रकाशित करना' रहोभ्याख्यान है। भाष्य के अनुमार 'स्त्री पुरुष' का उल्लेख नाचार्य प्रभाचन्द्रने रत्नकरगडकी टोकाम,श्राशाधरजीने अपने सागारधर्मामृत में भी किया है । श्राचार्य पूज्यपाद भी इसी तरह लिख चुके हैं। इस विवेचनले भान पक नरीखे लोग तो यही अर्थ निकालेंगे कि 'स्त्री-पुरुष की गुप्त बान प्रगट करना रहोभ्यारयान है। अन्य लोगों की गुप्त बात प्रगट करना रहोभ्याख्यान नहीं है। परन्तु विद्यानन्टि ग्वामी ने श्लोक वार्तिक में जो कुछ लिखा है उससे यात दूसरी ही हो जाती है।
"मंवृतम्य प्रकाशनं होम्यारयानं, स्त्री पुरुषानुष्ठित गुप्त क्रिया विशेष प्रकाशनवत्' अर्थात् गुप्त क्रिया का प्रकाशन, रहोभ्यारयान है । जैसे कि स्त्री-पुरुष की गुप्त बात का प्रकाशन । यहाँ स्त्री पुरुष का नाम उदाहरण रूपमें लिया गया है। इससे सगे की गुप्त यान का प्रकाशन करना भी रहोभ्यास्यान कहलाया। यही बात गयचन्द्र ग्रन्थमाला से प्रकाशित नत्वार्थ भाष्य में भी मिलती हैं-"स्त्री पुसयो परस्परेणान्यस्यवा"
मेरे कहने का सार यह है कि जैसे रहोभ्याख्यान की परिभाषा में बहुलता के कारण दृष्टांत रूप में 'स्त्री पुरुष' का उम्मेण कर दिया है उसी तरह विवाह की परिभाषा में मूलमें कन्या-शब्द न होने पर भी, यहुलना के कारण उदाहरण रूप में कन्या-शब्दका उल्लेख हुश्रा है। जिसका अनुकरण रहोभ्या. ख्यान की परिभाषा के 'स्त्री पुरुष' शब्द की तरह दूसरों ने भी किया है। परन्तु विद्यानन्दि स्वामी के शब्दोंसे यह बात साफ़