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विषय- दर्शन श्लाघनीय है। इससे इतर सम्प्रदाय के अध्येताओं के लाभ से निषेध नहीं .किया जा सकता ।
६ - उपलब्ध अंग आगमों का परिचय - यह अध्याय वर्तमान उपलब्ध अंग आगमों का विस्तार से उनके अध्ययन, प्रकरण, चूलिका आदि के विषय - विशेष का परिचय कराता है । प्रासंगिक रूप में यत्रतत्र महत्ता, समीक्षा एवं उनकी भाषा शास्त्रीय विमर्श के साथ प्राचीनता, उत्तर कालिक और शैली, भाषा एवं चूर्णिकारों के मन्तव्यों को भी यहाँ प्रस्तुत करके रोचकता लायी गई है। इस अध्याय का महत्व इस दृष्टि से भी बढ़ गया है कि प्रत्येक अंग का समग्र विषय स्पष्ट होने के साथ ही, वर्णित दृष्टान्त, कथा, सिद्धान्त आदि के उल्लेख्य तथ्यों की ओर भी ध्यान दिलाया गया है ।
इन अंग आगमों के विदेशी विद्वानों द्वारा किये गये अनुवाद, शोधपूर्ण प्राक्कथन तथा निबंध लेखन आदि का भी परिचय दिया गया है, जो अति महत्वपूर्ण है ।
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७- अंग बाह्य आगमों का परिचय - श्रुतकेवलियों स्थविरों आदि के द्वारा विरचित ग्रंथों को - अनंग-प्रविष्ट प्रकीर्णक, उपांग अथवा अंगबाह्य शब्द से सम्बोधित किया गया है । इनके परिचय में भेद-प्रभेदों के कारण विविधता का होना स्वभाविक ही है । किन्तु सूरीश्वरजी इसे आगमों के प्रमाणों से ही व्यवस्थित रूप में समझाते हैं । मूल शीर्षक के अनुसार परम्परा-मान्य प्रत्येक अंगबाह्य का परिचय देते हुए यहाँ विवेचन सरणि में आचार्यों की टीका, भाष्य, चूर्णी आदि में प्रकटित मान्यताओं को भी समुपस्थित किया है। सभी उपांगों में वर्णित विषयों का प्रकरणानुसार परिचय सार-सञ्चयनी दृष्टि से दिया है । लेखन एवं चयन शैली इतनी मनोरम है कि पूरे ग्रंथ का वास्तविक स्वरूप सहजरूप से प्रत्यक्ष हो जाता है । छेदसूत्र, मूलसूत्र, निर्युक्तिं आदि के परिचय भी समीक्षण सहित इसी अध्याय में उपलब्ध है । परम्परा में जिन अन्य ग्रंथों को आगमों के रूप में मान्यता मिली है उन १३ ग्रंथों का परिचय देकर वैदेशिकों की कृतकार्यता से भी अवगत कराया गया है
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- आगमिक व्याख्या साहित्य - यह सर्वमान्य सत्य है कि 'ग्रंथगत विषयवस्तु का रहस्योद्घाटन उसके विश्लेषण अथवा व्याख्या के बिना दुरूह है।' हजारों वर्षों के अन्तराल में स्थित आगम - वाङ्मय के गाम्भीर्य का परिज्ञान उन पर सिद्धहस्त, मर्मज्ञ, तप:पूत एवं पारम्परिक प्रज्ञा के धनी आचार्यों द्वारा इन आगमों पर 'निर्युक्ति, भाष्य, चूर्णि, टीका, विवरण, वृत्ति, दीपिका, टिप्पण, अवचूरि, विवेचन, छाया, अक्षरार्थ पंचिका, वचनिका, टब्बा, भाषाटीका, अनुवाद' आदि निरन्तर लिखे गये हैं । इनकी विविधता, विशिष्टता, उदात्तता, गम्भीरता आदि से सर्वसामान्य को अवगत कराने के ध्येय से यह अध्याय लिखा गया है । यहाँ प्रसंग प्राप्त व्याख्या के प्रकार, अभिधेय, संकलित आगमों
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