________________
जैनागमों में छेद सत्रों का स्थान अति महत्वपूर्ण है, क्योंकि जैन संस्कृति का सार है- श्रमण धर्म और श्रमण धर्म की सिद्धि के लिए श्रमणाचार- साध्वाचार की निर्दोष साधना अनिवार्य है । छेद सूत्रों में जैन श्रमण वर्ग के आचार से संबंधित प्रत्येक विषय का पर्याप्त विवेचन किया गया है । उसे चार वर्गों में विभाजित कर सकते हैंउत्सर्ग, अपवाद, दोष और दोष शुद्धि । दोष शुद्धि को प्रायश्चित भी कह सकते हैं। उत्सर्ग याने किसी विषय का सामान्य विधान । अपवाद का अर्थ है, परिस्थिति विशेष की दृष्टि से श्रामण्य की रक्षा के लिए विशेष विधान अथवा छुट । दोष याने उत्सर्ग अथवा अपवाद का भंग और प्रायश्चित अर्थात व्रतभंग के लिए शुध्दिकरण हेत् समुचित दंड । यह तो मानी हुई बात है कि किसी भी विधान या व्यवस्था के लिए ये चार बातें आवश्यक होती है- १. सर्वप्रथम सामान्य नियम का विधान किया जाता है। २. अनन्तर उपयोगिता, देश, काल, शक्ति आदि को दृष्टि में रखते हुए अल्पाधिक छूट दी जाती है, क्योंकि इस प्रकार का लचीलापन आने पर छूट न देने पर नियम पालन प्राय: असंभव हो जाता है । परिस्थिति विशेष के लिए अपवाद व्यवस्था होना अनिवार्य है। ३. केवल नियम और अपवाद व्यवस्था से ही कोई विधान पूर्ण नहीं होता, किन्तु उसका पालन करते समय होने वाले दोषों की संभावना का विचार करना आवश्यक होता है । ४. और जब उसके दोषों का विचार किया, तब उनकी शुद्धिकरण के लिए दंड व्यवस्था भी अनिवार्य है, क्योंकि केवल दोषों का विचार कर लिया जाये, किन्तु शुद्धि करण के लिए दंड व्यवस्था का निर्धारण न हो, तो इष्ट सिद्धि नहीं होती।
इस शुद्धिकरण के लिए दंड व्यवस्था से निम्न लाभ होते हैं- पहला पूर्व दोषों का परिमार्जन होने से दोषभार नहीं बढ़ता और दूसरा भविष्य में उस दोष की या उस जैसे अन्य दोषों की पुनरावृत्ति न होने से दोषों में कमी आ जाती है । उक्त समग्र कथन का फलितार्थ यह हुआ कि आचार धर्म के गूढ़ रहस्यों को समझने एवं विशुद्ध रूप में सूक्ष्मतम क्रिया कलापों को जानने और पालने के लिए छेद सूत्रों का ज्ञान अनिवार्य है । उनका ज्ञान किये बिना जिन कथित निर्दोष आचार का परिपालन करना असंभव है। छेद सूत्रों की तरह अन्य धर्म परंपराओं ने भी अपने अपने साधकों के लिए आचार विचार की व्यवस्था की है। जैसे कि विनय पिटक में बौद्ध भिक्षुओं के आचार विचार का इसी प्रकार विवेचन किया गया है । छेद सूत्रों के नियमों की विनय पिटक के नियमों से बड़ी रोचक तुलना की जा सकती है।
दशाश्रुतस्कंध, बृहत्कल्प, व्यवहार, निशीथ, महानिशीथ और पंचकल्प (अनुपलब्ध) अथवा जीतकल्प ये छह छेदसूत्र के रूप में प्रसिद्ध है । इन उपलब्ध छह छेद सूत्रों में छेद के अतिरिक्त अन्य प्रकार के प्रायश्चितों एवं विषयों का वर्णन भी
(९२)