Book Title: Jain Agam Sahitya Ek Anushilan
Author(s): Jayantsensuri
Publisher: Raj Rajendra Prakashan Trust

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Page 255
________________ में अपना पैसा खर्च करते थे तथा धर्म और संघ की भक्ति करते थे। सबसे दयनीय दशा निम्नवर्ग की थी। ये लोग बड़ी कठिनाई से द्रव्योपार्जन कर पाते थे । इसी कारण उनकी आजीविका मुश्किल से चलती थी। कोदों का भात ही उन्हें नसीब होता था। श्रमजीवी साहूकारों द्वारा शोषित किये जाते थे तथा कर्जा न चुका सकने के कारण उन्हें जीवन भर उनकी गुलामी करनी पड़ती थी। प्रात:काल होने पर गायें चरने जातीं और व्यापारी, लुहार, किसान आदि सभी श्रमिक अपने-अपने कामों में लग जाते थे। तत्कालीन समृद्ध परिवारों में पहने जाने वाले आभूषणों के कतिपय नाम इस प्रकार हैं- कुंडल, गुण, मणि, तुडिय, तिसरिय, बोलमा, पलवा, हार, अर्धहार, एकावली, मुक्तावली, कनकावली, रत्नावली, पट्ट और मुकुट । ये सभी आभूषण सोने, हीरे, जवाहरात, मोतियों आदि से बनाये जाते थे। इनके अतिरिक्त फूलों के आभूषण बना कर भी श्रंगार करने का प्रचलन था। निम्न श्रेणी के लोग कोड़ियो, गुंजाफल, सीप आदि के आभूषण पहनते थे। प्राय: सभी लोग आभूषणों से अपने शरीर को सजाने का ध्यान रखते थे। महिलाएं अनेक प्रकार के साज श्रृंगार करती थी। सामाजिक जीवन में महिलाओं की स्थिति का अन्यत्र विचार किये जाने से यहाँ उनके बारे में विशेष उल्लेख नहीं किया गया है। * मरण संस्कार - अन्त्येष्टि क्रिया जीवन में जन्म के साथ मरण का नाता भी जुड़ा हुआ है । जब चैतन्यविहीन शरीर मात्र रह जाता है, तब उसे शव कहते हैं । इसी की अन्त्येष्टि क्रिया की जाती है। शव को चन्दन, अगरु, तुरुक्क, घी और मधु डालकर जलाया जाता था। शरीर के जल जाने पर हड्डियों को एकत्र कर उन पर स्तूप बना दिये जाते थे। मृतक पूजन और रोदन (रुज्जरुह) का उल्लेख मिलता है । अनाथ मृतक की हड़ियों को घड़े में रख कर गंगा में सिराया जाता था। शव को पशुपक्षियों के भक्षण आदि के लिए जंगल आदि में भी रख कर छोड़ दिया जाता था। राजा का आदेश होने पर साधु के शव को गड्ढे (अगड), दीर्घिका, बहती हुई नदी अथवा जलती हुई आग में रख दिया जाता था। अपराधियों के शवों को भी गीध, गीदड़ आदि से भक्षण कराने के लिए छोड़ दिया जाता था। मुर्दे को गाड़ने का भी रिवाज था। विशेषकर यह रिवाज म्लेच्छों में प्रचलित था। ये लोग मुर्दो को मृतक गृह या मृतक शयन में गाड़ देते थे। मृतकों की नीहरण क्रिया बड़े ठाट-बाट से होती थी। उनके अनेक मृतकृत्य (१८०)

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