Book Title: Jain Agam Sahitya Ek Anushilan
Author(s): Jayantsensuri
Publisher: Raj Rajendra Prakashan Trust

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Page 280
________________ * खनिज पदार्थ खेती के काम में न आने वाली जमीन बंजर कहलाती थी। जंगलों में अनेक स्थानों पर लोहा, सोना, चांदी आदि खनिज पदार्थों की भरमार थी । खानों में से लोहा, ताँबा, सीसा, जस्ता, चांदी, सोना, मणि, रत्न और वज्र उपलब्ध होते थे। धातुओं के उत्पत्ति स्थान को आकर कहा गया है । कालिय द्वीप अपनी चांदी, सोना, रत्न और वज्र की खानों के लिए प्रसिद्ध था। भारत के व्यापारी वहाँ से बहमुल्य धातुओं को अपने जहाजों में भरकर स्वदेश चले आते थे। अन्य खनिज पदार्थों में लवण (नमक) ऊस (साजी माढी), गेस हरताल, हिंगलुक, मणसिल, सासग (पारा), सेडिय (सफेद मिट्टी), सोरट्ठिय और अंजन के नाम मिलते हैं । इन खनिज पदार्थों से तरह-तरह के आभूषण, बर्तन, प्रसाधन की सामग्री आदि वस्तुएँ बनायी जाती थीं। * कताई बुनाई ___ कृषि, वनोपज, खनिज आदि से अर्थोपार्जन करने के बाद श्रम द्वारा आजीविका चलाने वालों का क्रम आता है । ये श्रमिक अनेक प्रकार के आभूषण, प्रसाधन सामग्री, कृषि-औजार, कपड़े आदि बनाने का कार्य करते थे । वस्त्र बुनाई एक महत्वपूर्ण उद्योग माना जाता था। शिल्पकारों के कुंभकार (कुम्हार), चित्रकार, लुहार (कर्मकार) और नाई (काश्यप) के साथ वस्त्रकार (णंतिक्त - जुलाहा) भी गिनाये गये हैं । वस्त्रकारों में दूष्य का व्यापार करने वालों को दोसिय (दोशी) सूत का व्यापार करने वालों को सोत्तिय (सौत्रिक) और कपास का व्यापार करने वालों को कप्पासिय (कपासी, कासिक) कहा जाता था। इसके अतिरिक्त तुन्नाग (तूनने वाले), तन्तुवाय (बुनकर), पट्टकार (पट्टकूल, रेशम का व्यापार करने वाले पटवे), सीवग (दर्जी) और छिपाय (छीपा) आदि के भी उल्लेख मिलते हैं । वस्त्रों का नियमित व्यापार होता था । आगमों में अनेक प्रकार के वस्त्रों का उल्लेख मिलता है। कपड़े धोने और कपड़े रंगने के उद्योग धंधों का प्रचार था । श्रेणियों में धोबियों की गणना की गयी है । खार (सज्जिया खार) से मैले कपड़े धोये जाते थे। जैसे मैले कपड़े होते, उसके अनुसार पत्थर पर पीटे जाते, घिसे जाते और रगड़े जाते थे। जब कपड़े धुलकर साफ हो जाते, तब उन्हें धूप देकर सुगंधित किया जाता था। गोमूत्र, पशुओं की लेंडी, क्षार आदि से कपड़े धोये जाते थे। रजक शालाओं का उल्लेख मिलता है । रजक कपड़े रंगने का कार्य भी करते थे। तौलिये आदि वस्त्रों को काषाय (गेरुआ) रंग से रंगा जाता था । रंगे हुए कपड़े गर्म मौसम में पहने जाते थे। चिकुर (पीत वर्ण का एक गंध द्रव्य), हरताल, सरसो, किंशुक (केशूद्रा), (२०५)

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