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हत्थिसीस व्यापार और उद्योग का दूसरा केन्द्र था । यहाँ अनेक व्यापारी रहा करते थे । यहाँ के व्यापारी व्यापार के लिए कालिय द्वीप जाते थे। यह द्वीप सोने, रत्न और हीरों की समृद्ध खानों तथा धारीदार घोड़ों के लिए प्रसिद्ध था।
पारसद्वीप में प्राय: व्यापारियों का आना-जाना लगा रहता था। सिंहल द्वीप (लंका) में व्यापारी ठहरा करते थे। सिंहल, पारस, बर्बर (बार्वरिकोन), जोणिय (भवन भव), दमिल (तमिल), अरब, पुलिन्द, बहली (वाह्लीक, बल्ख, अफगानिस्तान) तथा अन्य अनार्य देशों से दास-दासी लाए जाते थे।
मथुरा और विदिशा वस्त्र उत्पादन के बड़े केन्द्र थे । गौड़ देश रेशमी वस्त्रों के लिए प्रसिद्ध था । पूर्व से आने वाला वस्त्र लाट देश में आकर ऊंची कीमत पर बिकता था । ताम्रलिप्ति, मलय, काक, तोसली, सिंध, दक्षिणापथ और चीन से विविध प्रकार के वस्त्र आते थे । नेपाल रोएँदार बहुमूल्य कंबलों के लिए प्रसिद्ध था। महाराष्ट्र में ऊनी कंबल अधिक मूल्य में बिकते थे । कालिय द्वीप के अतिरिक्त कंबोज व उत्तरापथ घोड़ों के लिए प्रसिद्ध थे। दीलवालिया के खच्चर अच्छे समझे जाते थे। पुण्डू (महास्थान जिला बांगरा, बंगाल) अपनी काली गायों के लिए प्रसिद्ध था। पारसकुल (ईरान) से शंख, पुगीफल (सुपारी), चंदन, अगरु, मजीठ, चांदी, सोना, मणि, मुक्ता, प्रवाल आदि बहुमूल्य वस्तुएँ आती थी। * यातायात के साधन .
व्यापार और उद्योग धंधों के विकास के लिए शीघ्रगामी और सस्ते आवागमन के साधनों का होना परम आवश्यक है। उस काल में जलमार्ग और स्थल मार्ग यातायात के साधन थे। जैन आगमों में स्थल मार्ग संबंधी श्रंगारक (सिंघाटक), चिक (तिग), चतुष्क (चउक्क), चत्वर (चच्चर), महापथ और राजमार्ग जैसे शब्दों का उल्लेख तो मिलता है, फिर भी उन दिनों में मार्गों की दशा संतोषजनक प्रतीत नहीं होती है। ये मार्ग जंगलों, रेगिस्तानों और पहाड़ियों में से होकर गुजरते थे, इसलिए इन मार्गों में घोर वर्षा, चोर, लुटेरे, हाथी, शेर आदि जंगली जानवरों, राज्य अवरोध, अग्नि, राक्षस, गड्डे, सूखा, दुष्काल, जहरीले वृक्ष आदि का भय बना रहता था। कभी जंगल का रास्ता पार करते समय वर्षाकाल बिताना पड़ता था। कितने ही मार्ग बहुत बीहड़ होते थे
ओर इन मागों के गुण-दोषों का संकेत करने के लिए मार्ग के अभाव में रास्ते में कीले गाड़ दिया करते थे, जिससे दिशा का पता लग सके । रेगिस्तान के यात्री रात को जल्दी-जल्दी यात्रा करते थे। बालक और वृद्ध आदि के लिए यहाँ कावड़ काम में ली जाती थी। इन सब कठिनाइयों के कारण उन दिनों व्यापारी लोग साथ बनाकर यात्रा
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