Book Title: Jain Agam Sahitya Ek Anushilan
Author(s): Jayantsensuri
Publisher: Raj Rajendra Prakashan Trust

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Page 308
________________ निमज्जक- स्नान करते समय क्षण भर जल में निमग्न रहने वाले। संयक्खालं- शरीर पर मिट्टी लगाकर स्नान करने वाले। दक्खिणकूलगं– गंगा के दक्षिण तट पर रहने वाले। उत्तरकूलग— गंगा के उत्तर तट पर रहने वाले। संखधमक- शंख बजाकर भोजन करने वाले। कूलधमक- किनारे पर खड़े होकर शब्द करने वाले। मियलद्धय- जानवरों का शिकार करने वाले, पशुभक्षक। हत्थितावस- हाथी को मारकर बहुत समय तक भोजन करने वाले । सिर्फ हाथी को ही मारकर खाने वाले। उड्डूंडक-दण्ड को ऊपर करके चलने वाले। दिसापोक्खी-जल से दिशाओं का सिंचन कर फलफूल आदि बटोरने वाले। वक्कवासी- वल्कल के वस्त्र धारण करने वाले। अंबवासी-जल में रहने वाले। बिलवासी- बिल में रहने वाले। जलवासी- जल में निमग्न होकर बैठे रहने वाले । वेलवासी- समुद्र तट पर रहने वाले। रुक्खमूलिया-वृक्ष के नीचे रहने वाले। • अंबुभक्खी - जलभक्षण करने वाले। वाउभक्खी - वायु का भक्षण कर रहने वाले । सेवालभक्ती- शैवाल खाकर रहने वाले। इनके सिवाय अनेक तपस्वी मूल, कन्द, छाल, पत्ते, पुष्प और बीज खाकर रहते थे । अनेक सड़े हुए मूल, कंद आदि भक्षण करते थे । स्नान करते रहने से उनका शरीर पीला पड़ जाता था। आतापना और पंचाग्नि तप से वे अपने शरीर को तपाते थे। यें तापस श्रमण गंगा तट पर रहते थे। वानप्रस्थ आश्रम का पालन करने वाले होने से ये गंगातटवासी वानप्रस्थी तापस के नाम से विख्यात थे। * परिव्राजक श्रमण गेरुआ वस्त्र धारण करने के कारण इन्हें गेरुउ अथवा गैरिक श्रमण भी कहा जाता था। ये परिव्राजक श्रमण ब्राह्मण धर्म के प्रतिष्ठित पंडित होते थे और आवसक (अवसह) में रहते थे। ये परिव्राजक आचार शास्त्र और दर्शन आदि विषयों पर (२३३)

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