Book Title: Jain Agam Sahitya Ek Anushilan
Author(s): Jayantsensuri
Publisher: Raj Rajendra Prakashan Trust

View full book text
Previous | Next

Page 309
________________ वाद-विवाद करने के लिए दूर-दूर तक पर्यटन करते थे । ये वेद वेदांग तथा अन्य ब्राह्मण शास्त्रों के विद्वान होते थे। ये दान, शौच और तीर्थस्थान का उपदेश देते थे । · इनका कहना था कि जो पदार्थ अपवित्र है, वह मिट्टी से धोने से पवित्र हो जाता है और इस प्रकार शुद्ध देह और निरवद्य व्यवहार से युक्त होकर स्नान करने से स्वर्ग की प्राप्ति होती है । ये परिव्राजक कूप, तालाब, नदी, वापी, पुष्करिणी, दीर्घिका, गुंजालिका, सर और सागर में प्रवेश नहीं करते थे, गाड़ी, पालकी आदि में नहीं बैठते थे, घोड़ा, हाथी, ऊँट, बैल, भैंसा और गधे पर सवार नहीं होते थे, नट, मागध आदि का खेल नहीं देखतेथे, हरित वस्तु का लेप, उन्मूलन आदि नहीं करते थे, भक्त कथा, राजकथा, देशकथा और चोर कथा नहीं कहते थे और अनर्थदण्ड नहीं करते थे । ये लोग लोहे, रांगे, तांबे, जस्ते, सीसे, चाँदी व सोने के पात्रों तथा अन्य बहुमूल्य पात्रों को धारण नहीं करते थे ये केवल तुंबी और लकड़ी या मिट्टी के पात्र रखते थे । ये गेरुए वस्त्रों के सिवाय दूसरे रंग-बिरंगे वस्त्र नहीं पहनते थे । ये हार, अर्धहार आदि कीमती आभूषण नहीं पहनते थे । ये केवल एक ताँबे की अंगूठी पहनते थे । ये मालाएँ भी धारण नहीं करते थे । ये सिर्फ एक कर्णफूल पहनते थे । ये गंगा की मिट्टी के सिवाय अगरू, चन्दन और कुंकुम से अपने शरीर का लेप नहीं कर सकते थे । ये परिव्राजक पीने के लिए सिर्फ मगध देश का एक प्रस्थ (वस्तु नापने का वजन पात्र) प्रमाण स्वच्छ जल लेते थे । उसे थाली, चम्मच धोने अथवा स्नान आदि करने के लिए उपयोग में नहीं लाते थे । 1 1 1 I आगमों में अनेक प्रकार के परिव्राजक श्रमणों का उल्लेख मिलता है । भगवती सूत्र में आगत कुछ नाम इस प्रकार है चरक जो समूह में घूमते हुए भिक्षा ग्रहण करते थे अथवा जो खाते हुए चलते थे । चीरक- मार्ग में पड़े हुए वस्त्र को धारण करने वाले या वस्त्रमय उपकरण रखने वाले । चर्मखण्डिक— चर्म ओढ़ने वाले अथवा चर्म के उपकरण रखने वाले । भिच्छंड (भिक्षोण्ड)— केवल भिक्षा से निर्वाह करने वाले । गोदुग्ध आदि से नहीं । (कोई सुगत शासन के अनुयायी को भिक्षोण्ड कहते हैं ।) पंडुरंग - जिसका शरीर भस्म से लिप्त हो । इनके अतिरिक्त अनुयोग द्वार सूत्र में कुछ और दूसरे परिव्राजक श्रमणों के नाम दिए हैं संखा - सांख्य । जोई- योग के अनुयायी । (२३४)

Loading...

Page Navigation
1 ... 307 308 309 310 311 312 313 314 315 316