Book Title: Jain Agam Sahitya Ek Anushilan
Author(s): Jayantsensuri
Publisher: Raj Rajendra Prakashan Trust

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Page 311
________________ · दुघरंतरिया - एक घर में भिक्षा ग्रहण कर दो घर छोड़कर भिक्षा ग्रहण करने तिघरंतरिया - एक घर से भिक्षा लेने के बाद तीन घर छोड़कर भिक्षा लेने वाले । वा । सत्त घरंतरिया - एक घर से भिक्षा लेकर सात घर छोड़कर भिक्षा लेने वाले । उप्पलवेंटिया- कमल के डंठल खाकर रहने वाले । घर समुदाणिय- प्रत्येक घर से भिक्षा लेने वाले । विज्जु अंतरिया - बिजली गिरने के समय भिक्षा न लेने वाले 1 उट्टियसमण - किसी बड़े मिट्टी के बर्तन में बैठकर तप करने वाले । व्याख्या प्रज्ञप्ति के उल्लेखों से मालूम होता है कि उस काल में इस मत के. उपासकों का काफी बड़ा समूह था । उपासक दशांग में आगत भगवान महावीर के प्रमुख दस उपासकों में से सकडाल पुत्र कुंभकार पहले इस मत के प्रमुख उपासकों में से एक था । * अन्य श्रमण व्रती साधु आगम युग में उक्त श्रमण परंपराएँ तो मुख्य थी, पर उनके अतिरिक्त भी कुछ अन्य श्रमणों, व्रतियों की परंपराएँ भी थी । औपपातिक सूत्र में उनके नाम आए हैं। वे इस प्रकार हैं गौतम- ये छोटा सा बैल रखते हैं । उसके गले में कौड़ियों की माला पड़ी रहती है । यह बैल लोगों के पाँव पड़ने में शिक्षित होता है । भिक्षा माँगते समय ये साधु उस बैल को साथ रखते हैं । गोव्रतिक - गाय की भाँति व्रत रखने वाले । जब गायें चरने के लिए जंगल में जाती है, तब ये भी उनके साथ चले जाते हैं । जब गायें पानी पीती है, चरती है, सोती हैं, तब ये भी उसी तरह करते हैं । ये लोग तृण और पत्तों आदि का ही भोजन करते हैं । जब गायें वापस लौटती हैं, तब ये भी वापस लौटते हैं । गृहिधर्मी - गृहस्थ धर्म को श्रेयस्कर समझकर देव, अतिथि आदि को दान देकर संतुष्ट करते हैं और गृहस्थ धर्म का पालन करते हैं । धर्मचिन्तक धर्म शास्त्र के पाठक अथवा ऋषियों द्वारा प्रणीत धर्म संहिताओं का ये लोग चिन्तन करते हैं । अविरुद्ध-ये विनयवादी हैं । ये देवता, राजा, माता-पिता, पशु आदि की समान भाव से भक्ति करते हैं । (२३६)

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