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बृहत्कल्प भाष्य में द्वीप (सौराष्ट्र के दक्षिण में समुद्र मार्ग में एक योजन चलने पर स्थित) के दो सामरक को उत्तरापथ के एक रूप्यक के बराबर, दक्षिणा पथ के दो रूप्यकों को कांचीपुरी के एक नेलक के बराबर तथा कांचीपुरी के दो नेलकों को कुसुमपुर (पाटलीपुत्र) के एक नेलक के बराबर बताया गया है। * माप-तौल
आगम साहित्य में पाँच प्रकार के मापों का उल्लेख मिलता है- मान, उन्मान, अवमान, गणिम और पतिमान । मान दो प्रकार का बताया गया है- धनमान प्रमाण और रसमान प्रमाण । धनमान प्रमाण (जिससे धान्य आदि की माप-तौल की जाती है) के अनेक भेद हैं। जैसे- असई, पसई, सेतिका, कुडुव, प्रस्थ, आढक, द्रोण, मुक्तोली, मुख, इदूर, आलिंदक, अपचार आदि ।
मापिका द्वारा तरल पदार्थों को मापा जाता था।
उन्मान में अगरु, तगर आदि वस्तुएँ आती हैं। इनके माप के लिए कर्ष, पल, तुला और भार का उपयोग किया जाता था। अवमान में हस्त, दंड, धनुष्क, युग, नालिका, अक्ष और मुशल की गणना होती थी । इनसे कएँ, ईंट का घर, लकड़ी, चटाई, कपड़ा और खाई वगैरह मापी जाती थी। गणिम में गिनती की जाती थी।
__ प्रतिमान में गंजा, काकिणी, निष्पाव, कर्मभारक, मैडलक और स्वर्ण की गिनती की जाती थी। इनके द्वारा सोना, चांदी, रत्न, मोती, शंख और प्रवाल आदि तोले जाते
दूरी मापने के लिए अंगुल, वितस्ति, रत्नि, कुक्षि, धनुष और गव्यूत तथा लंबाई मापने के लिए परमाणु, त्रसरेणु, रथरेणु, बालाग्र, लिक्षा, यूका, यव का उपयोग किया जाता था । समय मापने के लिए समय, आवलिका, श्वास, उच्छवास, स्तोक, लव, मुहूर्त, अहोरात्र, पक्ष, मास, ऋतु, अयन, संवत्सर, युग, वर्षशत (शताब्दी) से लेकर शीर्ष प्रहेलिका तक का उपयोग किया जाता था।
___ तुला का भी उल्लेख मिलात है। दूसरे की आँख बचाकर कम-ज्यादा तोलने और मापने का काम चलता था। * उधार लेना-देना
व्यापार में अथवा आपस में विश्वास पर उधार लेते तथा देते थे। धन अधिकतर सोने आदि के रूप में संचित किया जाता था। लोग अपने मित्रों के पास भी अपना धन धरोहर के रूप में रख दिया करते थे, लेकिन उसकी सुरक्षा की कोई गारण्टी नहीं थी। कितनी ही बार लोग इस धन को वापस नहीं देते थे
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