Book Title: Jain Agam Sahitya Ek Anushilan
Author(s): Jayantsensuri
Publisher: Raj Rajendra Prakashan Trust

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Page 285
________________ (हँसी-मजाक करके हँसाने वाले), उमरकर (मसखरे) चाटुकार, दर्पकार और कौत्कुच्य (काया से कुचेष्टा करने वाले), आदि का उल्लेख है। * भृत्य दास आदि पूर्वोक्त प्रकार से अर्थोपार्जन करने वालों के अतिरिक्त कुछ लोग परिस्थिति वश या अन्य कारणों से दास, भृत्य आदि के रूप में किसी के यहाँ रह कर अपनी-अपनी आजीविका चलाते थे। प्राचीन भारत में दास प्रथा का प्रचलन था। दास-दासी घर का काम-काज करते हुए अपने मालिक के परिवार के साथ ही रहते थे। केवल राजा और धनी मानी लोग ही दासों के मालिक नहीं होते थे, बल्कि अन्य लोग भी अपने परिवार में दास-दासी रखते थे । स्थांनांग सूत्र में छह प्रकार के दास बतलाये हैं- जन्म से ही दास वृत्ति करने वाले, खरीदे हुए, ऋण न चुका सकने के कारण दास बने हुए, दुर्भिक्ष के समय दासवृत्ति स्वीकारे हए, जुर्माना आदि न देने के कारण दास बने हुए और कर्जा आदि न चुका सकने के कारण बन्दीगृह में डाले हुए। दास पुरुषों की भाँति दास स्त्रियाँ भी घर में काम करने के लिए रखी जाती थीं। वे खाद्य, भोज्य, गंध, आल्य, विलेपन और पंटल आदि ले कर अपनी स्वामिनी के साथ यक्ष आदि के मंदिरों में जाती थी। आगमों में अनेक दासियों का उल्लेख मिलता है । ये दासियाँ विदेशों से मंगाई जाती थीं। ये इंगित, चिन्तित, प्रार्थित आदि में कुशल होती थीं तथा अपने देश की वेशभूषा आदि धारण कर जब सभा में उपस्थित होती थीं, तब बहुत ही आकर्षक जान पड़ती थीं। ___ दासियों में कुब्जा, किराती, वामना (बौनी), वडमी (जिसका पेट आगे आया हुआ है) बर्बरी (बर्बर देश की), बकुशी (बकुश देश की), योनिका (जोनक देश की), पह्नविया (पहनव देश की), इसनिका, घोसकिनी (घासकिणी, बासणिया, वासिइणी), लासिया (लास देश की), लसिका (लकश देश की), द्राविड़ी(द्रविड देश की), सिंहली (सिंहल देश की), आरबी (अरब देश की), पुलिदी (पुलिंद देश की), पक्कणी, मुसंडी, शबरी, पारसी आदि के नाम गिनाये हैं। प्रतिदान के समय विविध प्रकार के वस्त्राभूषणों के साथ दासियों को भी देने का रिवाज था। दास-दासी बिल्कुल परतंत्र होते थे। उन्हें मालिक की आज्ञा के अनुसार ही अपनी प्रवृत्ति करनी पड़ती थी, फिर भी वे लोग आमोद-प्रमोद मनाने में पीछे नहीं रहते थे। उत्तराध्ययन सूत्र की टीका में दासी-मह का उल्लेख मिलता है। उससे पता चलता है कि दास-दासी भी धूम-धाम से उत्सव मना कर मनोरंजन किया करते थे। (२१०)

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