Book Title: Jain Agam Sahitya Ek Anushilan
Author(s): Jayantsensuri
Publisher: Raj Rajendra Prakashan Trust

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Page 284
________________ राज और बढ़ई काम किया करते थे। मकान बनाने के लिए ईंट(इट्टिका), मिट्टी (पुढवी), शर्करा (सक्करा), बालू (बालुया) और पत्थर (उपल) आदि की जरूरत पड़ती थी। पक्के मकानों में चूना पोतने (सुधा कम्मन्त) का रिवाज था । पत्थरों के घर (सेलोवट्ठाण) बनाये जाते.थे। बढई लोग बैठने के लिए आसन, पीठे, पलंग, खाट, खंटी, सन्दक, काष्ठ की मूर्तियाँ, बच्चों के खेल-खिलौने और काष्ठ के बर्तन आदि बनाते थे । काष्ठ के बर्तनों में आयमणि (लुटिया), उल्लंकय-डोयो, दव्वी (डोई) आदि का उल्लेक मिलता है। कृष्ण चित्र काष्ठ उत्तम समझा जाता था। ___कुशल बढ़ई अनेक प्रकार की खड़ाऊँ तैयार करते थे और उनमें वैडूर्य, सुन्दर रिष्ट और अंजन जड़कर उन्हें चमकदार बनाते थे। उन्हें बहुमूल्य रत्नों से भूषित करते थे। रथकार का स्थान सर्वोपरि था। उसकी राजरत्नों में गणना की जाती थी। रथकार विमान आदि भी तैयार करते थे। चर्मकार अथवा पदकार चमड़े का काम करते थे। ये लोग चमड़े से पानी की मंशक (देयडा), चर्मेष्ठ (चमड़े से वेष्ठित पाषाण वाला हथियार) तथा किणिक (एक प्रकार का वाद्य) तैयार करते थे । ये अनेक प्रकार के जूते भी बनाते थे। माली (मालाकार) एक से एक बढ़कर सुन्दरमाला और पुष्प गुच्छ (गुलदस्ता) गूंथकर तैयार करते थे । पुष्पों के अतिरिक्त तृण, पूँज, बेंत, मदन-पुष्प, मोरपंख, कपास का सूत, सींग, हाथी दाँत, कौड़ी, रुद्राक्ष और पुत्र-जीव आदि की भी मालाएँ (मल्ल, दाम) बनायी जाती थीं । फूलों के मुकुट तैयार किये जाते थे। प्रत्येक त्यौहार, महोत्सव में घर आदि को पुष्पों आदि से सजाने की परिपाटी होने के कारण पुष्प मंडप, बन्दवार, आदि मालाओं से सजावट करायी जाती थी। * अन्य पेशेवर लोग ऊपर कहे हुए कृषि, पशुपालन या व्यापार धंधे से अर्थोपार्जन करने वालों के सिवाय और भी बहुत से दूसरे पेशेवर लोग भी थे। उन्हें श्रमिक वर्ग में तो नहीं गिना जा सकता हैं, फिर भी वे समाज के लिए उपयोगी थे। उनमें आचार्य, चिकित्सक, वस्तुपाठक, लक्षण पाठक, नैमेत्तिक (निमित्त शास्त्र का ज्ञाता) गांधर्विक, नट, नर्तक, जल्ल (रस्सी पर खेल करने वाले), मल्ल, मोष्टिक, विंडवक (विदूषक), कथक (कथावाचक), पल्लवक (तैराक), लासन (रास गाने वाले),आख्यायक (शुभाशुभ बयान करने वाले), लंख, मंख, तूणइल्ल (तूणा बजाने वाले), तुनवीणक (वीणावादक), तालाचर (ताल देने वाले), भुजंग (संपेरे), मागध (गाने-बजाने वाले), हास्यकार (२०९)

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