Book Title: Jain Agam Sahitya Ek Anushilan
Author(s): Jayantsensuri
Publisher: Raj Rajendra Prakashan Trust

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Page 254
________________ जाते थे । उनमें विकाई की रक्षा हो सकती थी । अर्धखल्लक आधे पैर को और समस्त खल्लक सारे पैर को ढँक लेते थे । खपुसा घुटनों तक पहना जाता था । इससे सर्दी, सर्प, बर्फ और काँटों से रक्षा हो सकतीं थी । अर्ध जंघा आधी जाँघ को और पूर्ण जंघा समस्त जाँघ को ढँकने वाले जूते कहलाते थे । चमड़े की रस्सियों को गोफण कहा जाता था । आगम साहित्य में चमड़े के अन्य उपकरणों बध्न (टूटे हुए तलिए आदि जूतों को जोड़ने के लिए), धृति (फल आदि को फैलाने का चमड़ा), सिक्कस (छींका) और कापोतिका (वहंगी) आदि का उल्लेख किया गया है। भोजन और वस्त्र की तरह जीवन रक्षा के लिए घर भी आवश्यक है । वर्षा, सर्दी, गर्मी और आंधी से रक्षा के लिए घर का होना आवश्यक है । उस काल में घर सामान्य तथा ईंट और लकड़ी के बनाये जाते थे । घरों में दरवाजे, खंभे, देहली और साँकल, कुंडे रहते थे । धनी और समृद्ध लोग आलीशान भवनों में निवास करते थे । * जीवनयापन स्तर T लोग प्राय: ऐश-आराम से रहते थे । वे उबटन लगाकर स्नान करते थे तथा देश विदेश के सुन्दर और बहुमूल्य वस्त्र तथा आभूषण धारण करते थे । वे सुगंधित मालाएँ धारण करते थे तथा भाँति भाँति के विविध विशिष्ट व्यंजनों का आस्वादन करते थे । वे मद्यपान भी करते थे । वे गोशीर्ष चंदन, कुंकुम आदि का विलेपन करते थे, विविध वाद्य बजाते थे, नृत्य करते थे, नाटक रचाते थे, सुन्दर गीत गाते थे और उत्तम गंध और रस आदि का उपभोग करते थे । केशों को काटने और सजाने की ओर विशेष ध्यान दिया जाता था । आगम में आलंकारिक सभाओं का - केश कर्तनालय का उल्लेख मिलता है, जहाँ अनेक प्रकार के नौकर-चाकर, श्रमण, ब्राह्मण, अनाथ, रुग्ण और कंगाल पुरुषों की सेवा शुश्रूषा में लगे रहते थे । हजामत बनाने के कार्य को नख परिकर्म (णट्ट परिकम्म) कहा गया है 1 1 लोग सोना-चांदी और हीरे तथा रत्नों के आभूषणों का प्रयोग करते थे । राजा-महाराजा तथा धनी-मानी पुरुष अपने नौकर-चाकरों से परिवेष्टित होकर चलते थे । नौकर-चाकर मालिक के सिर पर कोरण्टक के फूलों की माला से सज्जित छत्र धारण किये रहते थे । उनके पीछे पीछे जुलूस चलता था, जिसमें सुन्दर रमणियाँ चामर ढुलाती और पंखे से हवा करती थी । उनके हाथ में मंगलघट होता था । धनी-मानी लोग महलों में निवास करते थे । वे अनेक स्त्रियों से विवाह करते थे । वे बड़े-बड़े दान देते थे, गणिकाओं को मनमाना शुल्क प्रदान करते थे और ठाट-बाट से उत्सव मनाते थे । 1 मध्यम वर्ग के लोग भी आराम का जीवन व्यतीत करते थे । वे लोग दान धर्म (१७९)

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