Book Title: Jain Agam Sahitya Ek Anushilan
Author(s): Jayantsensuri
Publisher: Raj Rajendra Prakashan Trust

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Page 268
________________ होता था । जुर्माने की वसूली से भी राजा को द्रव्य की प्राप्ति होती थी। उपहार के रूप में भी राज्य को आय होती थी। उपहार मिलने पर राजा व्यापारियों को कर मुक्त भी कर देता था। कर लगाने में पक्षपात भी किया जाता था । उदाहरणार्थ किसी वणिक को निधि का लाभ होने पर राजा उसे दंड देता था और निधि जप्त कर लेता था, लेकिन ब्राह्मण को निधि मिलने पर उसका सत्कार किया जाता था। कर वसूल करने वाले कर्मचारी शुल्कपाल, (गोभिया, संकिया) कहे जाते थे। शुल्कपाल शुल्क वसूल करने में निर्दयता से काम लेते थे। इस कारण जनसाधारण उनसे सन्त्रस्त रहा करते थे । ये लोग ब्याज, रिश्वत, अपमान, देय (अनिवार्य कर), मेघ (दंडकर), कुंत (तलवार के जोर से), लंछ पोष (लंछ नामक चोरों को नियुक्त करके), आदीपन (आग लगवा कर) और पंथकोट्ट (राहगीरों को कत्ल करवा कर) द्वारा प्रजा का उत्पीड़न और शोषण किया करते थे। अपने अधीन राजाओं से कर वसूल न होने के कारण राजा प्राय: उन पर आक्रमण करते थे और वसूली न होने की स्थिति में घर-माल-असबाब आदि को जला देने का भी आदेश देते थे। * शासन की इकाई गाँव व्यवस्था की दृष्टि से प्राचीन भारत में गाँव शासन की इकाई माना जाता था। ये गाँव इतने पास-पास होते थे कि एक गाँव के मुर्गे अथवा पशु दूसरे गाँव में बड़ी आसानी से जा आ सकते थे। गाँव की सीमा बताते हुए कहा गया है- १. जहाँ तक गायें चरने जाती हों, २. जहाँ से घसियारे या लकड़हारे घास और लकड़ी काटकर शाम तक लौट आते हों, ३. जहाँ तक गाँव की सीमा निर्धारित की गयी हो, ४. जहाँ गाँव का उद्यान हो, ५. जहाँ गाँव का कुआँ हो, ६. जहाँ देवकुल स्थापित हो और ७. जहाँ तक गाँव के बालक क्रीड़ा करने के लिए जाते हों, वहाँ तक गाँव की सीमा होती गाँवों में विभिन्न वर्ण और जातियों के लोग रहते थे, लेकिन कतिपय गाँवों में एक-एक वर्ण के लोग भी रहते थे। जैसे- माहणकुंड (बंभण गाँव), खत्तियकुंड गाम और वाणिय गाम । इनमें क्रमश: ब्राह्मण, क्षत्रिय और वणिक लोगों का निवास था। कुछ गाँवों में मुख्यतया मयूरपोषक (मयूरों को पाल कर, शिक्षा देने वाले) अथवा नट रहा करते थे। चोर-पल्ली में चोर रहते ते । सीमा प्रान्त के गाँव प्रत्यन्त ग्राम (पच्चन्त गाम) कहलाते ते । इन गाँवों में प्राय: उपद्रव होते रहते थे। ___गाँव के मध्यभाग में सभागृह होता था। वहाँ गाँव के प्रधान पुरुष आराम से बैठ सकते थे । वहाँ बैठकर लोग कहानी-किस्से सुनकर मन बहलाव करते थे। गाँव के प्रधान भोजिक कहे जाते थे। भोजिक एक तरह से गाँव का शासक होता था। वह कर वसूल करने केसाथ ग्रामवासियों को दंडित भी करता था। (१९३)

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