Book Title: Jain Agam Sahitya Ek Anushilan
Author(s): Jayantsensuri
Publisher: Raj Rajendra Prakashan Trust

View full book text
Previous | Next

Page 253
________________ निकाले वस्त्रों का भी उल्लेख है । भगवती सूत्र में वडग नाम के वस्त्र का भी उल्लेख है । टीकाकार ने इसका अर्थ टसर किया है । अनुयोग द्वार सूत्र में पाँच प्रकार के वस्त्रों के नाम गिनाये हैं- अंडज (अंडी नामक वस्त्र) कीरज (रेशम), बालय (ऊनी धागों से निर्मित) और वागय (वृक्ष की छाल से निर्मित)। इस सब प्रकार के वस्त्रों में दूस अथवा दृष्य कीमती वस्त्र होता था। देवदूस (देवदृष्य), (देवों द्वारा दिया गया वस्त्र) का उल्लेख मिलता है। भगवान महावीर ने जब श्रमण दीक्षा ग्रहण की थी, तब उन्होंने इस वस्त्र को धारण किया था। इसका मूल्य एक लाख सुवर्ण मुद्रा कूता गया है। विजय दृष्य एक अन्य प्रकार का.वस्त्र था, जो शंख, कुंद, जलधारा और समुद्र फेन के समान श्वेतवर्ण का होता था। ' ___ आगमिक टीका ग्रंथों में कोचव, पावारग(श्रावारक, कंबल), दाढि आलि(दाँतों की पंक्ति के समान श्वेत वस्त्र), पूरिका (टाट) और नवयक्ष (ऊन की चादर) का उल्लेख है। दूष्यों की दूसरी सूची में उपधान (हंस के रोम आदि से बना तकिया); तूली (पीजी हुई रुई अथवा आक की रुई के गद्दे, रजाई आदि, आलिंगनिका, गडोपधान (गालों पर रखने के तकिये) और मसूटक (चर्म-वस्त्र से बनाये हुए रुई के गोल तकिये) आदि की गणना की गयी है। तत्पश्चात् शयनीय चादर, गद्दे, तकिये, तोशक आदि का उल्लेख मिलता है। सुकुमार, कोमल, ग्रंथ प्रधान कषाय रक्त शारिकाओं (अंगोछे) के द्वारा स्नान करने के बाद शरीर पौंछा जाता था। यवनिका (जवणिया, पर्दा) का वर्णन भी आता है । उस पर सुन्दर बेलबूटे और हीरे मोती का कसीदा निकाला जाता था। चेल-चिल मिण एक दूसरे प्रकार की यवनिका (कनात) थी, जो जैन श्रमणों के उपयोग में आती थी। यह पाँच प्रकार की बतायी गयी है- १.सत्तमई-सत की बनी हई, २. रज्जमई- रस्सी की बनी हई, ३. वागमई - वृक्षों की छाल से बनी हुई, ४. देउमई - उण्डों की बनी हुई और ४. कडगमई - बाँस की बनी हुई । यह कनात पाँच हाथ लंबी और तीन हाथ चौड़ी होती थी। उस काल में लोग दो वस्त्र धारण करते थे- एक उत्तरीय (ऊपर का) और दूसरा अन्तरिम (नीचे का)। उत्तरीय वस्त्र बहुत सुन्दर होता था । उस पर लटकते हुए मोतियों के झूमके लगे रहते थे। वह अखंड वस्त्र का बना रहता था। उस काल में कपड़े सीने का रिवाज था। सुई-धागों का प्रचार था । बाँस, लोहे और सींग की बनी हई सुइयों का उल्लेख मिलता है । फटे वस्त्र को अधिक फटने से बचाने के लिए उसमें गाँठ मार दी जाती थी। ____ वस्त्रों की भाँति जूतों का भी उल्लेख मिलता है । सकल कृत्सन (सयल कसिण) जूते कई प्रकार के होते थे। पुडग (घुटक) अथवा खल्लक जूते सर्दी के दिनों में पहने (१७८)

Loading...

Page Navigation
1 ... 251 252 253 254 255 256 257 258 259 260 261 262 263 264 265 266 267 268 269 270 271 272 273 274 275 276 277 278 279 280 281 282 283 284 285 286 287 288 289 290 291 292 293 294 295 296 297 298 299 300 301 302 303 304 305 306 307 308 309 310 311 312 313 314 315 316