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इन सभी सूत्रों के ग्रंथों का ग्रंथमान हजारों श्लोक प्रमाण है । सबसे अधिक टीकाएँ दशवैकालिक, कल्पसूत्र तथा आवश्यक सूत्र पर लिखी गई है । टीकाओं की दृष्टि से वरीयता के क्रम में प्रथम कल्पसूत्र, द्वितीय आवश्यक सूत्र, तृतीय उत्तराध्ययन और चतुर्थ दशवैकालिक का स्थान है। अनेक पाश्चात्य विद्वानों द्वारा कितने ही आगमों के वृहद प्रस्तावनाओं के साथ अंग्रेजी, जर्मन आदि भाषाओं में अनुवाद भी किए गए हैं। जैसे कि प्रो. ई. लायमन ने औपपातिक सूत्र का अपनी विद्वतापूर्ण प्रस्तावना के साथ अनुवाद किया, जो सन् १८८३ में प्रकाशित हुआ। जे.एफ. कोल स्टुट गार्ट द्वारा १९३७ में सूर्य प्रज्ञप्ति ग्रंथ मूल रोमन लिपि में प्रकाशित हुआ। डॉ. जेकोबी द्वारा किया गया उत्तरांध्ययन का अंग्रेजी अनुवाद सन् १८९५ में सेक्रेड बुक्स ऑफ ईस्ट सिरीज खण्ड ४५ में और उसके बाद जाल शाण्टियर की शोधपूर्ण अंग्रेजी प्रस्तावना के साथ उत्तराध्ययन का संशोधित संस्करण पुनः सन् १९२२ में प्रकाशित हुआ। डॉ. शूबिंग द्वारा दशवैकालिक मूल का एवं डॉ. लायमन द्वारा भद्रबाहु कृत नियुक्ति के साथ अनुवाद किया गया। डॉ. जेकोबी द्वारा किया गया कल्पसूत्र का अंग्रेजी अनुवाद सेक्रेड बुक्स ऑफ ईस्ट खंड २२ में प्रकाशित हुआ। डॉ. शूबिंग द्वारा सन् १९०५ में जर्मन टिप्पणी के साथवृहतकल्प का संशोधित संस्करण प्रकाशित किया गया । इसी प्रकार व्यवहार सूत्र एवं निशीथ सूत्र का भी डॉ. शूबिंग द्वारा सन् १९१८ में अनुवाद किया गया । महानिशीथ का आलोचनात्मक अध्ययन डॉ. शूबिंग द्वारा सन् १९१८ में प्रकाशित हुआ तथा जीतकल्प का प्रो. लायमन ने अनुवाद किया।
आगमों के इस संक्षिप्त परिचय में प्रत्येक सूत्र की यथासंभव सारगर्भित जानकारी देने के बाद अब आगामी प्रकरण में आगमों के व्याख्या ग्रंथों का परिचय प्रस्तुत करते हैं।
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