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इन्द्रमह आदि उत्सवों के लिए तैयार किया हुआ खाद्य पदार्थ जो बच जाता था, उसे लोग प्रतिपदा के दिन-दूसरे दिन उपयोग में लाते थे। उत्सव के दिन आमोद-प्रमोद में उन्मत्त रहने के कारण जिन सगे-संबंधियों को निमंत्रित नहीं किया जा पाता, उन्हें प्रतिपदा के दिन बुलाया जाता था। इन्द्रमह के दिन लोग धोबी से धुले हुए स्वच्छ वस्त्र पहनते थे।
इन्द्रमह की तरह स्कन्दमह, यक्षमह और भूतमह भी धूमधाम से मनाए जाते थे। इन महोत्सवों पर लोग विविध प्रकार के व्यंजनों और पकवानों का सेवन करते हुए अपना समय आमोद-प्रमोद में बिताते थे। मथुरा के लोग मंदर यक्ष की यात्रा के लिए जाते थे । बहुम्लेच्छमह में ग्लेच्छ लोग एकत्र होते थे।
श्रावस्ती में दासियों का त्यौहार मनाया जाता था। उसे दासीमह कहते थे। स्थानोत्पत्ति का मह अचानक किसी अतिथि के आ जाने पर मनाया जाता था । इट्टगास्व के त्यौहार की तुलना उत्तर भारत में प्रचलित रक्षाबंधन या सलूने के त्यौहार से की जा सकती है । खेत में हल चलाते समय सीता (हल पद्धति, देवता, हल से पड़ने वाली रेखा) की पूजा की जाती है । इस अवसर पर भात आदि पकाकर यात्रियों को दिया जाता था। इसके अतिरिक्त लोग नदीमह, तड़ागमह, वृक्षमह, चैत्यमह, पर्वतमह, गिरियात्रा, कूपमह, वृक्षारोपण मह और स्तूपमह के उत्सवों में शामिल होकर आनन्द मनाते थे। कार्तिक पूर्णमासी को कौमुदी महोत्सव मनाया जाता था। उसमें सूर्यास्त के बाद स्त्री-पुरुष किसी बाग-बगीचे में जाकर रात बिताते थे। मदन त्रयोदशी के दिन कामदेव की पूजा की जाती थी। उज्जेणी महोत्सव के अवसर पर नगर के नर-नारी मस्त होकर विविध प्रकार से क्रीड़ा करते थे। ,
___ धार्मिक उत्सवों में पज्जोसण-पयूषण पर्व का सबसे अधिक महत्व था । यह पर्व भाद्रपद शुक्ला पंचमी को मनाया जाता था, लेकिन आर्य कालक के समय से यह पंचमी के स्थान पर चतुर्थी को मनाया जाने लगा। महाराष्ट्र में यह पर्व श्रावणी पूजा के नाम से प्रसिद्ध हुआ। जैन धर्म के महान प्रचारक राजा संप्रति के समय रथयात्रा महोत्सव बड़ी धूमधाम से मनाया जाता था । स्वयं राजा संप्रति इस अवसर पर अपने भोजकों के लेकर रथ के साथ-साथ चलता और रथ पर विविध प्रकार के वस्त्र, फल और कौड़ियाँ चढ़ाता था।
संखडि अथवा भोज भी एक महत्वपूर्ण त्यौहार था । जीव हत्या बहुत होने से इसे संखडि कहा जाता था। यह त्यौहार एक दिन अथवा अनेक दिन तक मनाया जाता था। अनेक पुरुष मिलकर एक दिन की अथवा अनेक दिन की संखडि करते थे। सूर्य के पूर्व दिशा में रहने के काल में पूर्व संखडि और सूर्य के पश्चिमि दिशा में
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