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रहने के काल में पश्चात संखडि मनाई जाती थी। अथवा किसी ग्राम आदि के पास पूर्व दिशा में मनाए जाने वाले उत्सव को पुर: संखडि और पश्चिम दिशा में मनाए जाने वाले उत्सव को पश्चिम संखडि कहते हैं। संखडि के समय कुत्तों द्वारा भोजन का अपहरण किए जाने और चोरों के उपद्रव की आशंका रहती थी। ऐसे अवसरों पर दूर-दूर से लोग सम्मिलित होने आते थे। वे विविध प्रकार के वस्त्राभूषणों से अलंकृत होकर अनेक अभिनयों से पूर्ण श्रंगार रस के काव्य पढ़ते थे और मस्त हुए स्त्री-पुरुष विविध प्रकार की क्रीड़ाएँ करते थे। लूंस-ठूस कर खा लेने से कई लोग भोजन करके शयन करते थे और विकाल में सोते रहते थे।
जैन श्रमणों को संखडियों में जाने का निषेध है।
संखड़ियाँ अनेक स्थानों पर मनाई जाती थी। सब लोग अपने-अपने त्यौहारों या विशेष दिनों में इन संखड़ियों का आयोजन करते थे। कुछ लोग व्यक्तिगत रूप से भी संखडि मनाते थे। इनके अतिरिक्त अनेक घरेलू त्यौहार भी मनाए जाते थे। पुत्रोत्सव का उल्लेख पूर्व में किया जा चुका है। विवाह के पश्चात् वर के घर प्रवेश कर वधू के भोजन करने को आहेणा कहा गया है । कुछ समय वर के घर रहने के पश्चात् जब वह अपने पिता के घर लौटती है, तो उसे पहेणग कहा गया है। ' मल्लयुद्ध, कुक्कुट युद्ध, अश्वयुद्ध आदि कितने ही युद्धों का उल्लेख जैन
आगमों में आता है। इससे पता लगता है कि लोग युद्धों द्वारा भी अपना मनोरंजन किया करते थे। अडिय और पवडिय आदि के द्वारा मल्ल युद्ध किया जाता था। मल्लयुद्ध के लिए राजा लोग अपने-अपने मल्ल रखते थे। इसके अतिरिक्त अश्व . युद्ध, हस्तियुद्ध, ऊँट युद्ध, महिषयुद्ध और शूकर युद्धों का भी उल्लेख किया गया है।
आगम में ऐसे कितने ही लोगों के नाम आते हैं, जो खेल-तमाशें आदि दिखाकर प्रजा का मनोरंजन किया करते थे । जैसे कि नट, नर्तक, जल्ल, भल्ल, विदूषक, कथावाचक, उछलने-कूदने वाले, तैराक, ज्योतिषी, गायक, भाँड, बाँस पर खेल दिखाने वाले (संख), चित्रपट दिखाकर भिक्षा मांगने वाले (मंख), वीणा बजाने वाले, विट, मागधर (ये विविध प्रकार से मन बहलाव किया करते थे । साधारण जन ही नहीं, राजा-रानी भी इन खेलों को देखने जाते थे।) बालक-बालिकाओं के मनोरंजन के साधनों के लिए अनेक खेल खिलौनों का उल्लेख आता है । खुल्लम (कपर्दक- एक प्रकार की कौड़ी), आडोलिय (गुल्ली), तिन्दूस (गेंद), पीत्रुल्ल (गुड़िया) और साडौल्य (शाटक वस्त्र) का उल्लेख मिलता है। इसके सिवाय शरपत (धनुष), गोरहग (बैल), घटिक (छोटा घड़ा), डिंडिम
और चेलगोल (कपड़े के गेंद) के नाम भी आते हैं। हाथी, घोड़ा, रथ और बैल के खिलोने से बच्चे खेला करते थे।
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