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समाधि की हुण्डी, द्रौपदी की चर्या, सामायिक की चर्या, साधु समाचारी, चंद्रप्रज्ञप्ति की टीप । इन ग्रंथों में एक दो को छोड़कर शेष आगमों के विषय का प्रतिपादन करने वाले हैं। उन्होंने कुछ और ग्रंथ भी लिखे हैं, लेकिन अब तक इन ग्रंथों का प्रकाशन नहीं हुआ है ।
विक्रम की बीसवीं सदी में श्री राजेंद्रसूरिजी महाराज हुए हैं । वे आगम साहित्य के मर्मज्ञ थे । वि.स. १८८३ में भरतपुर में उनका जन्म हुआ था। उनके पिता का नाम ऋषभदासजी और माता का नाम केसर देवी था । इक्कीस वर्ष की उम्र में उन्होंने श्री पूज्य प्रमोदसूरिजी के पास यतिदीक्षा ग्रहण की। फिर वि.स. १९२५ में जावरा (म.प्र.) में क्रियोद्धार करके शुद्ध चारित्र की प्ररूपणा की । स्वयं संवेगी मुनि (आचार्य) बने ।
उन्होंने सम्पूर्ण आगम साहित्य का अध्ययन करके जैन प्राकृत विश्वकोष 'अभिधान राजेंद्र' का निर्माण किया । यह कोश सात भागों में विभक्त हैं और अपने आप में अनूठा है । इस कोश के कारण आगम साहित्य के अध्ययन में अधिक सुविधा हुई। यह ग्रंथ जिनागम की कुंजी है । आगम साहित्य का ऐसा एक भी शब्द नहीं है, जिसका इस कोष में समावेश न हुआ हो । इसके अलावा श्रीमद् ने छोटे-बड़े लंगभग इकसठ ग्रंथों की रचना की । उनमें से कुछ ग्रंथों के नाम इस प्रकार हैं
१. आवश्यक सूत्रावचूरी टब्बार्थ, २. उपासक दशांग सूत्र भाषान्तर (बालावबोध), ३. दशाश्रुत स्कंध चूर्णि, ४. प्रज्ञापनोपांग सूत्र सटीक (त्रिपाठ), ५. जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति वीजक (सूची) ये सभी ग्रंथ अब तक अप्रकाशित हैं ।
श्रीमद् गुरुदेव ने दशाश्रुतस्कंध के आठवें अध्ययन कल्पसूत्र की कल्पसूत्रार्थ प्रबोधिनी के नाम से संस्कृत में व्याख्या की है और गुजराती में भी कल्पसूत्र बालावबोध की रचना की है। उन्होंने गच्छाचार पयन्ना वृत्ति नामक प्रकीर्णक ग्रंथ की भी गुजराती में टीका लिखी है । ये दोनों ग्रंथ प्रकाशित हैं । श्रीमद् गुरुदेव का स्वर्गवास वि.स. १९६३ में राजगढ़ (धार) में हुआ ।
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आजकल हिन्दी, अंग्रेजी, गुजराती आदि भाषाओं में विशिष्ट प्रस्तावनाओं के साथ अनेक आगमों के अनुवाद व सार प्रकाशित हुए हैं। मुनिश्री घासीलाल जी द्वारा स्थानकवासी संप्रदाय मान्य समस्त आगम ग्रंथ विशेष व्याख्याओं सहित प्रकाशित हो चुके हैं। इसी प्रकार स्व. युवाचार्य श्री मधुकर मुनिजी म.सा. के मार्गदर्शन एवं प्रधान सम्पादकत्व में आगम प्रकाशन समिति ब्यावर (राजस्थान ) द्वारा भी स्थानकवासी जैन परम्परा द्वारा मान्य सभी आगम ग्रंथ हिन्दी अनुवाद व विवेचन सहित प्रकाशित हो चुके हैं ।
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