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नमस्कार किया है और शांतिसूरि कृत टीका के आधार पर अपनी वृत्ति रचने की प्रतिज्ञा की है।
वृत्ति की अंतिम प्रशस्ति में अपने गच्छ गुरु, गुरु भ्राता, रचना स्थान व समय आदि का उल्लेख किया है । वृत्ति का ग्रंथमान १२००० श्लोक प्रमाण है।
खरतरगच्छीय लक्ष्मीवल्लभ गणि ने उत्तराध्ययन दीपिका नामक टीका लिखी है। इसकी विशेषता यह है कि उत्तराध्ययन सूत्र के प्रत्येक पद की शंका समाधानपूर्वक व्याख्या की गई है। व्याख्यान को स्पष्ट करने के लिए प्रसंगवश कथानकों का भी उपयोग किया गया है । ये कथानक संस्कृत में है और काफी बड़ी संख्या में है । टीका में उद्धरण नाम मात्र के हैं।
उत्तराध्ययन सूत्र पर अन्य आचार्यों द्वारा भी व्याख्याग्रंथ लिखे गए हैं, जिनके नाम इस प्रकार हैं-विनय हंस, कीर्तिवल्लभ (संवत् १५५२), कमलसंयम उपाध्याय (संवत् १५५४), तपोरत्नवाचक (संवत् १५५०), गुणशेखर, लक्ष्मीवल्लभ, भावविजय (संवत् १६८९), हर्षनन्दन गणि, धर्म मंदिर उपाध्याय (संवत् १७५०), उदयसागर (संवत् १५४६), मुनिचंद्रसूरि, ज्ञानशील गणि, अजितचंद्र सूरि, राजशील, उदयविजय, मेघराजवाचक, नगर्षि गणि, अजितदेव सूरि, माणिक्य शेखर, ज्ञानसागर आदि।।
लोकभाषा टीकाकारों में मुनि धर्मसिंह और उपाध्याय आत्मारामजी के नाम उल्लेखनीय हैं।
• आवश्यक सूत्र- इस सूत्र की टीकाओं में आचार्य भद्रबाह (द्वितीय) कृत नियुक्ति का प्रथम स्थान है, जो सामग्री, शैली आदि की दृष्टि से भद्रबाह कृत अन्य नियुक्तियों की अपेक्षा अधिक महत्वपूर्ण है। इसके प्रारंभ में जो उपोद्घात है, वह प्रस्तुतं नियुक्ति का तो महत्वपूर्ण अंग है ही, साथ में दूसरी नियुक्तियों के लिए भूमिका रूंप भी है। भूमिका रूप होते हुए भी इसमें ८८० गाथाएँ हैं। इसमें ज्ञानपंचक, सामायिक, ऋषभदेव चरित्र, महावीर चरित्र, गणधरवाद, आर्य रक्षित चरित्र, निह्नव मत आदि का संक्षेप में विवेचन किया गया है । उपोद्घात के बाद सामायिक उद्देशक का विवेचन प्रारंभ होता है । सामायिक के प्रारंभ में नमस्कार मंत्र आता है । अतः नमस्कार की नियुक्ति के रूप में आचार्य ने उत्पत्ति, निक्षेप, पद, पदार्थ आदि ग्यारह द्वारों से नमस्कार की चर्चा की गई है। इसी संदर्भ में अन्य बातों का भी प्रसंगानुसार वर्णन है। इसके बाद चर्विंशतिस्तव, वंदना, प्रतिक्रमण, कायोत्सर्ग, प्रायश्चित, ध्यान, प्रत्याख्यान आदि का निक्षेप पद्धति से विवेचन किया गया है। प्रतिक्रमण प्रकरण में अनेक ऐतिहासिक पुरुषों के उदाहरण भी दिए हैं। आचार्य ने इसके बाद जो नियुक्तियाँ लिखी हैं, उनमें पुनः पुनः विषयों के आने
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