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दशवैकालिक शब्द का व्याख्यान करने के प्रसंग में विकाल और काल का निक्षेप पद्धति से विचार किया है । इसी तरह ग्रंथ के दस अध्ययनों में एवं चूलिकाओं में आगत प्रत्येक विशिष्ट शब्द, पद की निक्षेप करके व्याख्या की है । कतिपय विशेष पदों व शब्दों के नाम इस प्रकार हैं- ओघ, द्रुम, पुष्प, धर्म, अहिंसा, संयम, तप, हेतु, उदाहरण, पिण्ड, एषणा, धान्य, स्थावर, वाक्य शुद्धि, प्रणधि, भिक्षु, रति आदि।
___ नियुक्ति का अनुसरण करके जिनदास गणि महत्तर ने दशवैकालिक चूर्णि लिखी है। वह द्रुमपुष्पिका आदि दस अध्ययन एवं दो चूलिका इस प्रकार बारह अध्ययनों में विभक्त है । भाषा मुख्यतया प्राकृत है। प्रथम अध्ययन में निक्षेप पद्धति से मुख्य-मुख्य शब्दों का विचार करके धर्म की प्रशंसा का वर्णन किया गया है। द्वितीय अध्ययन में प्रतिपाद्य विषय धर्मस्थित व्यक्ति को धृत्ति कराना है। अतः इसमें श्रमण के स्वरूप पर प्रकाश डालते हुए पूर्व, काम, पद, शीलांग, सहस्र आदि पदों का विवेचन किया है । तृतीय अध्ययन में दृढ़ धृति वाले का, चतुर्थ अध्ययन में जीव, अजीव, चारित्र, धर्म, यातना, उपदेश, धर्मफल आदि का, पंचम अध्ययन में साधु के उत्तर, गुणों के विचार के प्रसंग में पिंड स्वरूप, भक्त पानैषणा, गमनविधि, गोचर विधि, पानक विधि, परिष्ठापन विधि, भोजन विधि, आलोचना विधि आदि विषयों का विचार किया है । षष्ठ अध्ययन में धर्म, अर्थ, काम व्रत षट्क, कायषट्क आदि का प्रतिपादन किया है। सप्तम अध्ययन की चूर्णि में भाषा संबंधी शुद्धि, अशुद्धि, सत्य, मृषा, सत्यमृषा, असत्यमृषा आदि विचार है । अष्टम अध्ययन में इंद्रियादि प्राणधियों का वर्णन है, विवेचन है । नवम अध्ययन में विनय के विविध रूपों का और दशम अध्ययन में भिक्षु संबंधी गुणों पर प्रकाश डाला है । चूलिकाओं की चूर्णि में उनके प्रति या
अविषय संबंधित विवेचन है । यथास्थान अन्यान्य ग्रंथों के नामों का भी उल्लेख है। ___. हरिभद्रसूरि ने नियुक्ति के आधार पर संस्कृत में शिष्यबोधिनी नामक वृत्ति लिखी है। उसमें चूर्णि में आगत विषयों के साथ प्रसंगानुसार अन्य बातों का भी विशेष विवेचन किया है । वृत्ति के अन्त में अपना परिचय भी दिया है। __... 'उक्त व्याख्या ग्रंथों के अतिरिक्त सुमतिसूरि समयसुन्दर (संवत् १६८१) शांति देव सूरि, सोमविमल सूरि, राजचंद्र (संवत् १६६७), पार्श्वनाथ, मेरूसुन्दर, माणिक्यशेखर, ज्ञानसागर आदि ने दशवैकालिक पर व्याख्या ग्रंथ लिखे हैं । ... लोकभाषा टीका के लेखक मुनि धर्मसिंह हैं । हिन्दी टीकाओं में मुनि हस्तिमल कृत दशवैकालिक, सौभाग्य चंद्रिका और उपाध्याय श्री आत्माराम कृत दशवैकालिक आत्मज्ञान प्रकाशिका के नाम उल्लेखनीय है तथा शब्दार्थ के साथ तो इसके अनेक संस्करण प्रकाशित हो चुके हैं।
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