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अनुयोग द्वार सूत्र-इस सूत्र की वर्णन शैली नियुक्ति प्रधान है । अतः जिनदास गणि महत्तर ने मूलसूत्र का अनुसरण करते हुए प्राकृत भाषा में चूर्णि लिखी है । संस्कृत का प्रयोग तो न कुछ जैसा है। प्रारंभ में मंगलाचरण के प्रसंग में भावनन्दी का स्वरूप बताते हए पंचज्ञान का वर्णन किया है और विशेष जानकारी के लिए नंदी चर्णि देखने का संकेत है।
अनुयोग विधि और अनुयोगार्थ पर विचार करते हुए आवश्यकाधिकार पर भी प्रकाश डाला है। आनुपूर्वी के विवेचन के प्रसंग में पूर्वांगों का भी उल्लेख है। इसी प्रकार आत्मांगुल, उत्सेघांगुल, प्रमाणांगुल, काल, प्रमाण, औदारिक आदि शरीर प्राणियों की संख्या आदि बातों की जानकारी दी है।
हरिभद्र सूरि ने अनुयोग द्वार चूर्णि की शैली पर अनुयोग द्वार टीका लिखी है और उसमें इन्हीं विषयों का वर्णन किया है, जिनका चूर्णि में व्याख्यान है । ज्ञाननय और क्रियानय का स्वरूप बताते हुए ज्ञान एवं क्रिया दोनों की संयुक्त उपयोगिता सिद्ध की है।
मलधारी हेमचंद्र सूरि ने.अनुयोग द्वार के सूत्रों का सरल अर्थ प्रस्तुत करने के लिए अनुयोग द्वार वृत्ति व्याख्या ग्रंथ लिखा है । प्रारंभ में वीर जिनेश्वर, गौतम आदि सूरि वर्ग और श्रुत देवता को नमस्कार किया है। अंत में वही प्रशस्ति है, जो विशेषावश्यक भाष्य की वृत्ति के अंत में है । वृत्ति का ग्रंथमान ५९०० श्लोक प्रमाण
..: मुनिधर्मसिंह ने गुजराती टवा लिखा है। * अवशिष्ट आगमों के व्याख्या ग्रंथ .. सर्वमान्य आगम व्याख्या ग्रंथों का परिचय देने के अनन्तर शेष रहे आगमिक व्याख्या ग्रंथों का परिचय प्रस्तुत करते हैं । उनके नाम इस प्रकार हैं.. ' पिंडनियुक्ति, महानिशीथ, जीतकल्प, चतुःशरण आतुर प्रत्याख्यान, भक्त परिज्ञा, संस्तारक गच्छाचार, तंदुल वैचारिक, चंद्रवेध्यक, देवेंद्रस्तव, गणिविद्या महाप्रत्याख्यान, वीरस्तव।
पिंडनियुक्ति- इसके रचयिता भद्रबाह (द्वितीय) हैं। दशवकालिक सत्र के पाँचवे अध्ययन का नाम पिंडैषणा है । इस अध्ययन पर लिखी गई नियुक्ति के विस्तृत हो जाने के कारण इसे पिंड नियुक्ति के नाम से अलग मान लिया गया।
. पिंड का अर्थ है भोजन । इसमें पिण्ड रूपन, उद्गम दोष, उत्पादन दोष, एषणा दोष और ग्रासैषणा इन दोषों का प्ररूपण किया गया है। इसमें ६७१ गाथाएँ हैं।
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