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श्रीमत् विजय राजेन्द्रसूरिजी ( अभिधान कोशकार) महाराज ने भी उपासक दशांग सूत्र भाषान्तर बालावबोध की रचना की है, पर वह अमुद्रित है ।
अन्तकृद्दशा- इसकी संस्कृत व लोकभाषा टीका क्रमशः अभयदेवसूरि और मुनि धर्मसिंह ने लिखी है । संस्कृत टीका सूत्र स्पर्शी एवं शब्दार्थ प्रधान है तथा जिन शब्दों या पदों की व्याख्या नहीं हुई है, उनकी जानकारी के लिए ज्ञाता धर्म कथा के विवरण पढ़ने का निर्देश किया है। प्रारंभ में अन्तकृत शब्द का अर्थ बताया है - अन्त अर्थात् भवान्त और कृत्त याने किए हुए अर्थात् जिन्होंने भव का अन्त किया है, उन्हें अन्तकृत कहते हैं । यह आगम दस अध्ययन युक्त नहीं है, लेकिन कुछ वर्गों में है । अतः उस पद्धति का अनुसरण करके इसका नामकरण अन्तकृद्दशा किया गया है
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अनुत्तरोपपातिक दशा- इसकी भी संस्कृत टीका सूत्रस्पर्शी एवं शब्दार्थ ग्राही है । प्रारंभ में टीकाकार अभयदेव सूरि ने अनुत्तरोपपातिक दशा का अर्थ बताया है कि अनुत्तर विमान में उत्पन्न होने वाला अनुत्तरोपपातिक कहलाता है । इसके प्रथम वर्ग में दस अध्याय हैं । इस कारण इस ग्रंथ का पूरा नाम अनुपत्तरोपपातिक है । अन्त में अपनी लघुता प्रकट करते हुए टीकाकार ने कहा है कि जिन शब्दों का अर्थत: और पर्यायत: ज्ञान न होने से कुछ त्रुटि रह गयी हो, तो सुधीजन उनका संशोधन कर लें 1
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प्रश्नव्याकरण- इस दसवें अंग आगम की अभय देव सूरि कृत संस्कृत टीका का ग्रंथमान ४६३० श्लोक प्रमाण है । टीका शब्दार्थ प्रधान है । द्रोणाचार्य ने इसे शुद्ध किया है । टीका के प्रारंभ में ग्रंथ की दुरुहता का संकेत किया है और अन्य आगमों के नामार्थों की तरह प्रश्नव्याकरण का भी अर्थ बताया है कि प्रश्न अर्थात् अंगुष्ठादि विधाओं का जिसमें व्याकरण अभिधान किया जाता है, उसे प्रश्न व्याकरण कहते हैं । प्रश्न व्याकरण का दूसरा नाम प्रश्न व्याकरण दशा भी है । उसके अर्थ का स्पष्टीकरण किया गया है कि प्रश्न + व्याकरण + दशा याने जिसमें प्रश्नों अर्थात् विद्या विशेषों का व्याकरण प्रतिपादन करने वाले दशा अर्थात् दस अध्ययन हैं, उसे प्रश्न व्याकरण दशा कहते हैं । वार्तमानिक प्रश्न व्याकरण सूत्र में आस्रव पंचक और संवर पंचकं का प्रतिपादन उपलब्ध है । इसके कारण की ओर संकेत करते हुए टीकाकार ने बताया है कि महाज्ञानी पूर्वाचार्यों ने इस युग के पुरुषों के स्वभाव को दृष्टि में रखते हुए ही उन विद्याओं के बदले पंचास्रवों और पाँच संवरों का वर्णन किया प्रतीत होता है ।
तपागच्छीय ज्ञानविमल सूरि ने भी प्रश्न व्याकरण सूत्र की टीका लिखी है । उसका नाम प्रश्न व्याकरण सुखबोधिका वृत्ति है । यह अभयदेव सूरि कृत टीका से बड़ी है। जिन पदों की व्याख्या अभयदेव सूरि ने सरल समझकर छोड़ दिया था,
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