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बृहत्कल्प की संस्कृत टीका भद्रबाहुकृत नियुक्ति और लघु भाष्य पर आधारित है। वृत्तिकार मलयगिरि भाष्य गाथा ६०६ तक अपनी टीका लिख सके और शेष ग्रंथ की टीका आचार्य क्षेमकीर्ति ने पूर्ण की। टीका में प्राकृत गाथाओं के साथ-साथ प्राकृत कथानक भी उद्धृत किए गए हैं । वृत्ति के अंत में प्रशस्ति है । उसके अनुसार आचार्य क्षेमकीर्ति के गुरु का नाम विजयचंद्र सूरि था। विजयचंद्रसूरि आचार्य जगच्चन्दसूरि के शिष्य थे। आचार्य क्षेम कीर्ति के वज्रसेन और पद्मचन्द्र ये दो गुरु भाई थे। वृत्ति की समाप्ति संवत् १३३२ ज्येष्ठ शुक्ला दशमी को हुई थी। इस विशाल वृत्ति का ४२६०० श्लोक प्रमाण ग्रंथमान है।
श्री सौभाग्य सागर ने भी बृहत्कल्प पर एक टीका ग्रंथ लिखा है। . बृहत्कल्प और व्यवहार इन दोनों सूत्रों का वर्णन एक दूसरे का पूरक है । जो वर्णन एक में नहीं आया या हो सका, उसका विवेचनं दूसरे में किया गया है । अतः साध्वाचार की पूरी जानकारी के लिए एवं उनका अनुसंधान मिलाने के लिए मूल ग्रंथों के साथ-साथ आवश्यक निर्देशों व स्पष्टीकरण के लिए दोनों के टीकाग्रंथ देखने चाहिए।
मुनि धर्मसिंह ने इसकी लोकभाषा टीका लिखी है।
दशाश्रुतस्कंध- इस सूत्र की नियुक्ति, चूर्णि और लोकभाषा टीका लिखी गई है । नियुक्ति के रचयिता भद्रबाहु (द्वितीय) हैं । प्रारंभ में नियुक्तिकार ने दशाकल्प और व्यवहार सूत्र के कर्ता चरम सकल श्रुतज्ञानी प्राचीन ग्रोत्रीय भद्रबाहु को नमस्कार किया है। इसके बाद एक और दश का निक्षेप पद्धति से व्याख्यान करके दशा श्रुत स्कंध के दस अध्ययनों के अधिकारों का निर्देश किया है। प्रथम अध्ययन असमाधि स्थान की नियुक्ति में द्रव्य व भाव समाधि का स्वरूप बताया है एवं स्थान के नाम, स्थापना आदि पंद्रह निक्षेपों का उल्लेख किया है। द्वितीय अध्ययन शवल की नियुक्ति में शवल का नामादि चार निक्षेपों से व्याख्यान किया है। तृतीय अध्ययन की नियुक्ति में आशातना की निक्षेप पद्धति से व्याख्या की है। चतर्थ अध्ययन गणि संपदा में गणि और संपदा पदों का निक्षेपपूर्वक विचार किया है । इसी प्रकार पंचम आदि दस अध्ययन पर्यन्त प्रत्येक विषय का अर्थ व उसके भेद-प्रभेद बताते हुए निक्षेप पद्धति से व्याख्यान किया है।
दशाश्रुतस्कंध चूणि मुख्यतया प्राकृत भाषा में है । यत्र तत्र संस्कृत शब्दों का अथवा वाक्यों का भी प्रयोग हुआ है । चूर्णि का आधार मूलसूत्र एवं नियुक्ति है। प्रारंभ में परंपरागत मंगल की उपयोगिता पर विचार करने के अनन्तर निर्यक्ति गाथा का व्याख्यान किया है । व्याख्यान शैली सरल है । कहीं-कहीं मूलसूत्र पाठ एवं चूर्णि संमत पाठ में अन्तर दिखाई देता है।
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