________________
का उद्देश्य भी पूर्ववत् आगमों के मूल भावों को स्फुट सूत्र में व्यक्त करने का रहा है। परिणामतः तत्कालीन अपभ्रंश (प्राचीन गुजराती) में बालावबोधों की रचना हुई। इस प्रकार की रचनाओं से राजस्थानी एवं गुजराती बोलियों को जानने वाले आगम प्रेमियों को काफी लाभ मिला । आज का साधारण भाषाविज्ञ भी उन व्याख्याओं को पढ़कर अपनी आगमनिधि का रसास्वादन कर सकता है। * व्याख्या प्रकारों में संकलित आगमों के नाम
__व्याख्या प्रकारों का आशय जान लेने के बाद और आगमिक व्याख्याओं का परिचय प्राप्त करने के पूर्व यह जान लेना समचित होगा कि व्याख्या प्रकारों में से किस
आगम की कौन-कौन सी व्याख्याएँ हई हैं । व्याख्या प्रकार और तद्गत आगमों के नाम इस प्रकार हैं
१. पांच प्रकार- (नियुक्ति, भाष्य, चूर्णि, संस्कृत टीका और लोकभाषा टीका) आवश्यक, दशवैकालिक, उत्तराध्ययन, व्यवहार और बृहत कल्पसूत्र । २. चार प्रकार- (नियुक्ति, चूर्णि, संस्कृत, टीका और लोकभाषा टीका) आचारांग, सूत्रकृतांग। . (नियुक्ति, चूर्णि, लोकभाषा टीका) निशीथ सूत्र तीन प्रकार (नियुक्ति, चूर्णि और लोकभाषा टीका) दशाश्रुतस्कंध। (चूर्णि, संस्कृत टीका और लोकभाषा टीकां) , नंदीसूत्र, अनुयोगद्वार, जंबूद्वीप, प्रज्ञप्ति । दो प्रकार- (चूर्णि, संस्कृत टीका) । भगवती, जीवाभिगम सूत्र। (संस्कृत टीका, लोकभाषा टीका)
स्थानांग, प्रश्नव्याकरण, विपाक सूत्र, औपपातिक, राजप्रश्नीय, निरयावलिका आदि अंतिम पाँच उपांग।
एक प्रकार- संस्कृत टीका। प्रज्ञापना, चंद्रप्रज्ञप्ति, सूर्य प्रज्ञप्ति। [वर्गीकरण में कोई त्रुटि हो तो परिमार्जन कर कृपया सूचित करें । उक्त व्याख्या प्रकारों में संकलित आगमों की सूची से यह ज्ञात होता है कि
(१२०)