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मिश्रित संस्कृत भाषा में व्याख्या ग्रंथों की रचना प्रारंभ की। यह एक नई व्याख्या विधा थी। इसे चूर्णि नाम दिया गया। इस विधा का प्रचार होने से व्याख्या साहित्य का क्षेत्र तो व्यापक बना, लेकिन जैसे नियुक्तियाँ और भाष्य सभी आगम ग्रंथों पर नहीं लिखे गए, वैसे ही चूर्णियाँ भी सभी आगम ग्रंथों पर नहीं लिखी गई । फिर भी पूर्वद्वय व्याख्या विधाओं की अपेक्षा कुछ अधिक आगमों पर एवं आगमेतर ग्रंथों पर भी चूर्णियां लिखी गईं। किन्तु अपेक्षाकृत उनकी संख्या बहुत कम हैं।
जिन आगम ग्रंथों पर चूर्णियाँ लिखी गईं, उनके नाम क्रमशः इस प्रकार हैं१. आचारांग, २. सूत्र कृतांग, ३. भगवती, ४. जीवाभिगम, ५. निशीथ, ६. महानिशीथ. ७. व्यवहार, ८. दशाश्रुतस्कंध, ९. बृहत्कल्प, १०. पंचकल्प, ११. ओघनियुक्ति, १२. जीत कल्प, १३. उत्तराध्ययन, १४. आवश्यक, १५. दशवेकालिक, १६. नंदी, १७. अनुयोग द्वार, १८. जंबूद्वीप प्रज्ञप्ति ।
भाषा की दृष्टि से इन चूर्णियों में नंदी चूर्णि और अनुयोग द्वार चूर्णि मुख्यतया प्राकृत में है । क्वचित कदाचित यत्र तत्र संस्कृत के श्लोक और गद्यांश उद्धृत किए गए हैं। जिनदास कृत दशवैकालिक चूर्णि की भाषा मुख्यतया प्राकृत है और अगस्त्यसिंहसरिकृत दशवैकालिक चूर्णि प्राकृत में ही है । उत्तराध्ययन चूर्णि संस्कृत मिश्रित प्राकृत में है। इसमें भी अनेक स्थानों पर संस्कृत के श्लोक उद्धृत हैं। आचारांग चूर्णि, सूत्रकृतांग चूर्णि प्राकृत प्रधान है। इनमें यत्र तत्र संस्कृत के श्लोक भी उद्धृत हैं। जीतकल्प चूर्णि प्राकृत में ही है। इसमें उद्धरण भी प्राकृत के दिए हैं। निशीथ विशेष चूर्णि अल्प संस्कृत मिश्रित प्राकृत में है।
चूर्णिकारों में जिनदास गणि महत्तर, सिद्धसेन सूरि, प्रलंब सरि और अगस्त्य सिंह सूरि के नाम ज्ञात होते हैं । अन्य चूर्णिकारों के नाम अज्ञात हैं । इनमें भी चूर्णिकार के रूप में मख्यतया जिनदास गणिं महत्तर का नाम प्रसिद्ध है, किन्त उन्होंने कितनी चूर्णियाँ लिखी, यह निश्चित रूप से ज्ञात नहीं होता । परंपरा से निम्नलिखित चूर्णियाँ अवश्य जिनदास गणि महत्तर कृत मानी जाती है, निशीथ विशेष चूर्णि, नंदी चूर्णि, अनुयोग द्वार चूर्णि, आवश्यक चूर्णि, दशवैकालिक चूर्णि, उत्तराध्ययन चूर्णि और सूत्रकृतांग चूर्णि।
जिनदास गणित महत्तर की जीवनी के बारे में विशेष जानकारी उपलब्ध नहीं है। निशीथ विशेष चर्णि के अंत में चर्णिकार का नाम जिनदास बताया है और प्रारंभ में विद्या गुरु के रूप में प्रद्युम्न क्षमा श्रमण का नाम तथा उत्तराध्ययन चूर्णि में जो लेखक का परिचय दिया है, उसमें इनके नाम का स्पष्ट उल्लेख नहीं है, किन्तु गुरु का नाम गोपाल गणि महत्तर बताया है, जो वाणिज्य कुल, कोटिक गण, वज्र शाखा से संबंधित थे। नंदी चूर्णी के अंत में भी जो लेखक परिचय दिया गया है, वह भी अस्पष्ट है।
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