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अध्याय ८
आगमिक व्याख्या साहित्य
इस प्रकरण में आगमिक व्याख्या साहित्य का संक्षिप्त परिचय प्रस्तुत करते
साहित्य की आत्मा है भाव और भावों की अभिव्यक्ति के साधन हैं शब्द | साहित्य में शब्दों का नहीं, भावों का महत्व है । भाव शून्य शब्द चमत्कार उत्पन्न कर सकते हैं, लेकिन जब तक उनमें भाव चेतना का संचार नहीं होता, तब तक उनका अपना कुछ भी महत्व नहीं है । माना कि साहित्य शब्दों की देन है, शब्दों का पुंज है और शब्द न हों तो साहित्य का सृजन नहीं हो सकता। शाब्दिक वाहन भाव विहार के साधन हैं, लेकिन शब्दों की संख्या सीमित है और उनकी गणना भी की जा सकती है, किन्तु उनमें गर्भित भाव असीम है। उनका उद्घाटन होता है, विशेष रूप से विवेचन करने पर, विभिन्न दृष्टियों से विश्लेषण करने पर ।
यही कारण है कि साहित्य के क्षेत्र में विवेचन को प्रमुख स्थान प्राप्त हो रहा है । सर्वानुमति से यह स्वीकार किया गया है कि ग्रंथगत रहस्योद्घाटन के लिएं उसका विविध आयामी विश्लेषण व्याख्या होना आवश्यक है। जब तक ग्रंथगत भाव वैशिष्ट्य की प्रामाणिक व्याख्या नहीं होती, विवेचन एवं विश्लेषण नहीं किया जाता, तब तक ग्रंथ में विद्यमान और उसके प्रणेता के विचारों की अनेक महत्वपूर्ण बातें अज्ञात रह जाती है । यह दृष्टिकोण जितना वर्तमानकालीन मौलिक ग्रंथों के लिए चरितार्थ होता है, उससे भी अधिक प्राचीन साहित्यिक ग्रंथों के लिए भी चरितार्थ होता है, क्योंकि पुरातन ग्रंथों की रचना शैली सूत्रात्मक है । तत्तत् ग्रंथ में उनके प्रणेताओं ने अपने विचारों को, भावों को अर्थ गांभीर्य युक्त पद्धति द्वारा संक्षेप में व्यक्त किया है । भारत का प्राचीन वाङ्मय विशेषतः सूत्रात्मक है । अतएव उसके रहस्योद्घाटन के लिए व्याख्या ग्रंथों की रचना होना अनिवार्य एवं आवश्यक तो है ही । यही कारण है कि व्याख्या साहित्य का निर्माण करना भारतीय साहित्य साधनों की परंपरा रही है ।
व्याख्या के प्रकार
व्याख्या साहित्य के सृजन की आवश्यकता का ऊपर उल्लेख किया गया है । इसके अतिरिक्त व्याख्या ग्रंथों के निर्माण से दो प्रयोजन सिद्ध होते हैं । प्रथम यह कि ग्रंथगत भावों के प्रगतिकरण से जनसाधारण सत्य को समझने में समर्थ होता है और
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