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द्वितीय यह कि ग्रंथ के अभीष्ट अर्थ का विश्लेषण करने में व्याख्याकार को असीम आत्मोल्लास की अनुभूति होने के साथ-साथ प्रसंगानुकूल अपनी मान्यता, बौद्धिक प्रगल्भता को प्रस्तुत करने का अवसर मिलता है । संक्षेप में कहा जाए तो व्याख्याकार का इस प्रकार का श्रम स्वपर एवं उभय को उपयोगी सिद्ध होता है।
व्याख्या और सरिता में समान रूपता है। जैसे सरिता स्रोत से प्रारंभ होकर क्रमशः क्षेत्र विस्तार करती हुई नए-नए जल प्रवाहों को अपने में समाहित करती हुई जनसाधारण को अपनी अमीधारा से संतुष्ट एवं शुष्क धारा को शस्य श्यामला भूमि में रूपान्तरित करती हुई सागर का रूप ले लेती है, वैसे ही व्याख्या व्याख्येय ग्रंथ के विशेष एवं पारिभाषिक शब्दों के अर्थ उनकी परिभाषाओं के स्रोत से प्रारंभ होकर युगानुरूप विवेचन प्रक्रिया के अनुगमन द्वारा नए-नए रूपों को धारण करके ग्रंथगत अभिछेद से पाठकों को परिचित कराते हुए अपनी पूर्ण विकास अवस्था को प्राप्त होती है । अर्थात् विशेष एवं पारिभाषिक शब्दों का लाक्षणिक अर्थ व्याख्या का प्रारंभ है और समग्र भावों का विवेचन करके ग्रंथ के अन्तर रहस्य को यथातथ्य रूप में पाठक के समक्ष उपस्थित कर देना उसकी पूर्णता है।
सभी प्राचीन भारतीय साहित्यकारों ने व्याख्या का यही क्रम विधान अंगीकार करके क्रमिक विकास स्तरों का नामकरण किया है-१. नियुक्ति, २. भाष्य और ३. टीका।
नियुक्ति शब्दार्थ रूप होती है । याने ग्रंथ गत विशिष्ट शब्दों का सरल, सुबोध भाषा में अर्थ प्रस्तुत कर देना नियुक्ति है, जिसे आज की भाषा में मीनिंग या अर्थ कहते
भाष्य में शब्दार्थ के अतिरिक्त भावों का भी विश्लेषण किया जाता है, लेकिन इसकी रचना विधा पद्यात्मक होने से छन्द के नियमों का भी ध्यान रखना पड़ता है। इस कारण व्याख्येय ग्रंथ की भावाभिव्यंजना में पूर्णता में कुछ न कुछ न्यूनता रह जाती है । अतः विशेष स्पष्टीकरण के लिए कुछ न कुछ और अपेक्षा रहती है। ___ चूर्णि और टीकाएँ भी भावों का ही विश्लेषण करती हैं, लेकिन उनमें जो अन्तर . है, उसका यथास्थान आगे संकेत किया जा रहा है।
संग्रहणी भी व्याख्या का एक रूप है, जिसमें ग्रंथ के विषय का संक्षेप में परिचय दिया जाता है । वार्तमानिक शिक्षा प्रणाली में प्रचलित सारांश टिप्पणी (नोट्स) आदि संग्रहणी के अपर नाम हैं।
उक्त व्याख्या प्रकारों के अतिरिक्त उत्तरवर्तीकाल में जैसे-जैसे भाषाओं में परिवर्तन आता गया और लोक भाषाओं के रूप में अपभ्रंश, गुजराती, अवधी, मैथिली,
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