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मूलपाठ मिलता है । सातवें अध्ययन में बारह भिक्षु प्रतिमाओं का विवेचन किया गया है। इसका मूल समवायांग के बारहवें स्थान में एवं विवेचन स्थानांग के तीसरे स्थान में तथा भगवती, अन्तकृद्दशा आदि सूत्रों में उपलब्ध है । आठवें अध्ययन में श्रमण भगवान महावीर के पाँच कल्याणको - च्यवन, जन्म, दीक्षा, केवलज्ञान, मोक्ष का वर्णन है। इसका मूल स्थानांग के पंचम स्थान में है। प्रसिद्ध कल्पसूत्र (पर्यषण कल्पपज्जोसणा कल्प) इसी अध्ययन का पल्लवित रूप है। नौवे अध्ययन में तीस महामोहनीय स्थानों का वर्णन है । इसका उपोद्घात अंश औपपातिक सूत्र में एवं शेष समवायांग के तीसवें स्थान में है । दसवें अध्ययन में निदान कर्म का वर्णन है । इसका उपोद्घात अंश संक्षेप में औपपातिक सूत्र में उपलब्ध है।
२. व्यवहार सूत्र- जिसके लिए जो प्रायश्चित है, उसे वह प्रायश्चित देना व्यवहार है । इस सूत्र में प्रायश्चित का वर्णन है । इसलिए इस सूत्र को व्यवहार सूत्र कहते हैं । इस सूत्र में दस उद्देश्य और करीब तीन सौ सूत्र हैं । उद्देश्यों का वर्ण्य विषय इसप्रकार है
पहले उद्देश में निष्कपट और संकपट आलोचना का प्रायश्चित, प्रायश्चित के भंग, एकल विहारी साधु शिथिल होकर वापस गच्छ में आने वाले साधु गृहस्थ होकर पुनः साधु बनने वाले, पर मत का परिचय करने वाले, आलोचना सुनने के अधिकारी इत्यादि विषयों का वर्णन है।
दूसरे उद्देश में दो या अधिक समान समाचारी वाले दोषी साधुओं की शुद्धि, सदोषी रोगी आदि की वैयावृत्त्य, अनवस्थितादि का पुनः संयमारोपण, अभ्याख्यान चढ़ाने वाले, गच्छ को त्यागकर पुनः गच्छ में आने वाले, एक पाक्षिक साधु और साधुओं का परस्पर संयोग आदि विषयक वर्णन है।
तीसरे उद्देश में गच्छाधिपति होने वाले साधु, पदवी धारक के आधार आचार, थोड़े काल में दीक्षित की पदवी, युवा साधु को आचार्य, उपाध्याय आदि से अलग रहने का निषेध, गच्छ में रहकर तथा गच्छ छोड़कर अनाचार सेवन करने वाले को सामान्य साधु एवं पदवीधारी को पद देने बाबत काल मर्यादा के साथ विधि निषेध, मृषावादी को पद देने का निषेध आदि का वर्णन है।
चौथे उद्देश में आचार्य आदि पदवी धारक का परिवार एवं ग्रामानुग्राम विचरते हुए उनका परिवार, आचार्य आदि की मृत्यु पर आचार्य आदि स्थापन कर रहना, न रहने पर दोषों की संभावना, युवाचार्य की स्थापना, भोगावली कर्म उपशमना, बड़ी दीक्षा देना, ज्ञानादि के निमित्त अन्य गच्छ में जाना, स्थविर की आज्ञा के बिना विचरने का निषेध इत्यादि विषयों का वर्णन किया गया है।
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