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नाम पिण्डेषणा है । इस अध्ययन पर लिखी गई नियुक्ति के विस्तृत हो जाने के कारण पिण्डनिर्युक्ति के नाम से एक अलग ही ग्रंथ स्वीकार कर लिया गया है । इसके रचयिता भद्रबाहु हैं।
पिण्डनिर्युक्ति के आठ अधिकार हैं- उद्गम, उत्पादन, एषणा, संयोजना, प्रमाण, अंगार, धूम और कारण । अधिकार के शीर्षक के अनुसार अपने-अपने विषय का उनमें वर्णन किया गया है ।
ओघनिर्युक्ति में साधु संबंधी नियम और आचार-विचार का प्रतिपादन किया गया है । बीच-बीच में अनेक कथाएँ हैं । इसीलिए कोई-कोई छेद सूत्रों में भी इसकी गणना करते हैं । इसमें आठ सौ ग्यारह गाथाएँ हैं । नियुक्ति और भाष्य की गाथाएँ आपस में मिल गई हैं। इसके कर्ता भी भद्रबाहु हैं ।
इस ग्रंथ में प्रतिलेखन द्वार, पिण्डद्वार, उपाधि निरूपण, अनायत्तन वर्जन, प्रतिसेवना द्वार, आलोचना द्वार और विशुद्धि द्वार की प्ररूपणा की गई है। जैन श्रमण संघ के इतिहास का संकलन करने की दृष्टि से यह ग्रंथ महत्वपूर्ण है।
४. चतु:शरण- इसका दूसरा नाम कुशलानुबंधी अध्ययन है । इसमें तिरसट गाथाएँ हैं। इसमें अरिहंत सिद्ध, साधु और केवली भाषित धर्म इन चार को शरण माना गया है । इसीलिए इसे चतुःशरण कहा गया है। प्रारंभ में षडावश्यक की चर्चा है । तदन्तर आचार्य ने कुशलानुबंधी अध्ययन की रचना का संकल्प किया है और उन्होंने चतुःशरण को कुशल हेतु बताते हुए चार शरणों का नामोल्लेख किया है ।
५. आतुर प्रत्याख्यान - मरण से संबंधित होने के कारण इसे अन्तकाल प्रकीर्णक कहा जाता है । इसे बृहदातुर प्रत्याख्यान भी कहते हैं । इसमें सत्तर गाथाएँ
हैं । दसवीं गाथा के बाद कुछ भाग गद्य में हैं। इस प्रकीर्णक में मुख्यतया बालमरण
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एवं पण्डित मरण का विवेचन है । मारणान्तिक प्रत्याख्यान की उपादेयता बताते हुए इसमें कहा है कि प्रत्याख्यानपूर्वक मरने वाला शाश्वत स्थान को-मोक्ष को प्राप्त करता है
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६. महाप्रत्याख्यान - इस प्रकीर्णक में प्रत्याख्यान - त्याग का विस्तृत व्याख्यान किया गया है । प्रारंभ में तीर्थंकारों, जिनों, सिद्धों एवं संयतों को प्रणाम किया है । संसार भ्रमण, पंडित मरण, पंच महाव्रत, वैराग्य, आलोचना, व्युत्सर्जन आदि पर प्रकाश डालने के बाद अंत में बताया है कि धीर की भी मृत्यु होती है और का पुरुष की भी इन दोनों में से धीरत्वपूर्ण मृत्यु ही श्रेष्ठ है । प्रत्याख्यान का सुविहित व सम्यक पालन करने वाला मरकर या तो वैमानिक देव होता है या सिद्ध पद प्राप्त करता है । . इसमें एक सौ बयालीस गाथाएँ हैं ।
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