________________
कि इन्होंने अपने पूर्व भव में दीक्षा ली थी, किन्तु फिर ये विराधक हो गये। इस कारण ज्योतिषी देवों में उत्पन्न हुए हैं। वहाँ से च्यव कर ये महाविदेह क्षेत्र में जन्म लेंगे और संयम धारण कर मोक्ष प्राप्त करेंगे।
__ पुष्पचूलिका उपांग के दस अध्ययनों में से क्रमश: एक-एक में श्री, ह्री, धृति, कीर्ति, बुद्धि, लक्ष्मी, इला, सरा, रस, गंध इन दस ऋद्धि शालिनी देवियों के पूर्व भवों का वर्णन है । इन सभी देवियों ने भगवान महावीर के समवसरण में उपस्थित हो कर विविध प्रकार के नाटक दिखाये थे । गौतम गणधर के पूछने पर भगवान ने इनके पूर्व भव बतलाये कि इन्होंने पूर्व भव में दीक्षा ली थी और फिर विराधक हो जाने के कारण यहाँ देवी रूप में उत्पन्न हुई है । अब यहाँ से च्यवकर महाविदेह क्षेत्र में ये जन्म लेंगी और वहीं से मोक्ष प्राप्त करेंगी।
___ वृष्णिदशा के बारह अध्ययनों में क्रमश: निषध, अनिय, वह, वहे, प्रगति, मुक्ति, दशरथ, दृढरथ, महाधनुष, सप्तधनुष, दशधनुष और शतधनुष इन बारह राजकुमारों की कथाएं हैं।
.. पहले अध्ययन में राजकुमार निषध का विस्तार से वर्णन है कि द्वारिका नगरी में कृष्ण वासुदेव राज करते थे। उसी नगरी में बलदेव नामक राजा रहते थे। उनकी रानी का नाम रेवती था। उनके पुत्र निषध ने भगवान अरिष्टनेमि के पास दीक्षा ली । नौ वर्ष तक शुद्ध संयम का पालन करके सर्वार्थसिद्ध विमान में वह तैतीस सागरोपम की स्थिति वाला देव हुआ.। वहाँ से च्यव कर वह महाविदेह क्षेत्र में जन्म लेगा और दीक्षा ग्रहण करके संयम साधना करके मोक्ष प्राप्त करेगा।
इसी प्रसंग में निषध के पूर्व भव का भी वर्णन किया गया है तथा द्वारिका नगरी की शोभा का वर्णन करते हुए भगवान अरिष्टनेमि के द्वारिका पदार्पण पर श्रीकृष्ण वासुदेव का सपरिवार व पुरजनों के साथ उनके दर्शनार्थ जाने का भी वर्णन किया है । . . . शेष ग्यारह अध्ययनों का वर्णन भी पहले अध्ययन के समान ही है। * छेद सूत्र - अंग बाह्य आगमों में कुछ आगम छेदसूत्र के नाम से प्रसिद्ध हैं। छेद संज्ञा कब से प्रचलित हुई और प्रारंभ में कौन से शास्त्र छेद वर्ग में सम्मिलित थे, यह निश्चयपूर्वक नहीं कहा जा सकता। किन्तु आवश्यक नियुक्ति गाथा ७७७ में सर्व प्रथम 'छेदसुत्त' का उल्लेख मिलता है । इससे प्राचीन उल्लेख अभी तक प्राप्त नहीं हुआ है। इससे अभी यही कहा जा सकता है कि आवश्यक नियुक्ति के समय में कुछ ग्रंथों का छेद सूत्र यह एक पृथक् वर्ग बन गया था। संभवत: छेदनामक प्रायश्चित को ध्यान में रखते हुए इन्हें छेद सूत्र कहा जाने लगा हो।
(९१)