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* १०. प्रश्नव्याकरण
शास्त्रीय दृष्टि से इस आगम का परिचय पूर्व में जो बताया गया है, उससे उपलब्ध आगम सर्वथा भिन्न है। इसमें न तो १०८ प्रश्न, न १०८ अप्रश्न और न ही १०८ प्रश्नाप्रश्न है तथा न नागकुमारों और सुपर्णकुमारों संगति के दिव्य प्रश्न है। सिर्फ पाँच हिंसादि आस्रवों और अहिंसादि पाँच संवरों का दस अध्ययनों में निरूपण है। इसका कारण बताते हुए वृत्तिकार अभयदेव सूरि ने लिखा है कि इस शास्त्रागत चमत्कारी विद्याओं का कोई अनधिकारी व्यक्ति दुरुपयोग न कर बैठे, अतः इस प्रकार की विद्याएँ इस सत्र से निकाल दी गई हैं। इसके दो तस्कंध हैं। प्रत्येक के पाँच-पाँच अध्ययन हैं । प्रथम श्रुतस्कंध के पाँचों अध्ययनों में क्रमशः हिंसा, झूठ, चोरी, अब्रह्म और परिग्रह इन पाँच आस्रव द्वारों का और दूसरे स्कंध के पाँच अध्ययनों में क्रमशः अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह इन पाँच संवर द्वारों का वर्णन है।
प्रथम श्रुतस्कंध के पहले अध्ययन में हिंसा का स्वरूप बताया गया है कि हिंसा प्राणियों को त्रासदायक एवं उद्वेगकारी है तथा हिंसा इहलोक-परलोक में अपयश
और परलोक में नरक तिर्यंच गति प्रदान करने वाली हैं। हिंसा का इन विशेषणों के द्वारा वर्णन किया गया है तथा उसके प्राणीवध, चण्ड आदि तीस गुण निष्पन्न नाम बताए हैं । अंत में अध्ययन का उपसंहार करते हुए हिंसा त्याग का उपदेश दिया है।
दूसरे अध्ययन में असत्य भाषण (मृषावाद) का कथन किया गया है । असत्य वचन, छल, कपट, माया एवं अविश्वास का स्थान है। अलीक, माया, मृषा, आदि इसके तीसं निष्पन्न नाम हैं। उन्हें हेतुपूर्वक समझाया गया है। इसमें असत्य भाषण के रूप में निम्नलिखित मतों के नामों का उल्लेख किया गया है
नास्तिकवादी अथवा वामलोकवादी–चार्वाक। पंचस्कंधवादी-बौद्ध। मनोजीव वादी- मन को जीव (आत्मा) मानने वाले। वायुजीव वादी- प्राणवायु को जीव मानने वाले । अंडे से जगत की उत्पत्ति मानने वाले। लोक को स्वयंभू कृत मानने वाले। संसार को प्रजापति (ब्रह्मा) द्वारा निर्मित मानने वाले। संसार को ईश्वरकृत मानने वाले। संसार को विष्णुमय मानने वाले।
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