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औपपातिक, राजप्रश्नीय, जीवाभिगम, प्रज्ञापना आदि उपांगों के नामों का उल्लेख आता है । सूत्रकृतांग और अनुत्तरोपपातिक दशा नामक अंगों में औपपातिक उपांग का उल्लेख आता है । इसका कारण क्या है ? तो समझना चाहिये कि सामयिक परिस्थितियों के कारण बहुत सा अंश छिन्न-भिन्न हो गया और उसकी कमी की पूर्ति के लिए सन्दर्भ मिलाकर क्रमबद्ध करने के लिए परस्पर एक दूसरे का उल्लेख किया गया है ।
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इस भूमिका के पश्चात् संक्षेप में उपांगों के वर्ण्य विषयों का परिचय प्रस्तुत
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१. औपपातिक- पहला उपांग औपातिक सूत्र है । इसे आचारांग का उपांग माना जाता है । ग्रंथ का प्रारंभ चम्पा नगरी के वर्णन से किया गया है। इसमें तिराली स सूत्र हैं। अंग, उपांग़ आगमों में जहाँ कहीं भी नगर, उद्यान, राजा, रानी, समवसरण, लोकजीवन सेठ साहूकार आदि का वर्णन आता है, वहाँ सन्दर्भ रूप में इस सूत्र का उल्लेख किया जाता है कि इसके लिए देखो औपपातिक सूत्र का अमुक अंश । इस दृष्टि से इस सूत्र का बहुत महत्व है । इसके उत्तरार्ध भाग में जीव किस करनी से किस गति में उत्पन्न होता है, नरक और देवलोक में जीव दस हजार वर्ष से लेकर तैंतीस सागरोपम तक की आयु किस करनी से प्राप्त करता है इत्यादि विस्तार पूर्वक बताया गया है । यह उत्कालिक सूत्र है । इसमें वर्णित विषय निम्नलिखित तीन अधिकारों में विभाजित है - १. समवसरणाधिकार, २. औपपातिकाधिकार और ३. सिद्धाधिकार । इन अधिकारों में अपने नामानुसारं विषयों, का वर्णन किया गया है। जैसे कि
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समवसरणाधिकार में चंपा नगरी, पूर्णभद्र चैत्य अशोक वृक्ष, पृथ्वीशिला, कोणिक राज़ा, धारिणी रानी, वार्ता निवेदक (समाचार देने वाला व्यक्ति), भगवान महावीर के नगरी की ओर पधारने की सूचना, उनके गुणों का, संपूर्ण शरीर का नख से शिख तक वर्णन, चौतीस अतिशय, वाणी के पैंतीस गुण, भगवान महावीर साधु-साध्वी परिकर के साथ पधारना, भगवान के पधारने की सूचना, नमुत्थुणं की विधि व पाठ, साधु के गुणों का वर्णन, द्वादश तपों के तीन सौ चौपन भेद, साधुओं द्वारा शास्त्र के पठन-पाठन का वर्णन, साधुओं के विशेष गुण, साधुओं की उपमाओं' का वर्णन, संसाररूपी समुद्र और धर्म रूपी नौका का वर्णन, देव और मनुष्यों की पर्षदाएँ, नगर व सेना की सजावट का वर्णन, कोणिक राजा का सपरिवार व सपरिषद भगवान के दर्शनार्थ गमन, पाँच अभिगम व वंदना की विधि, महिलाओं द्वारा वंदना की विधि, तीर्थंकर का उपदेश और परिषद द्वारा की गयी प्रशंसा आदि का बहुत ही पदलालित्य शैली में प्रांजल वर्णन किया गया है।
औपपातिक अधिकार में गौतम गणधर के गुणों का वर्णन, उनके कर्मबंध,
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