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और २. सुखविपाक । दोनों स्कंधों में दस-दस अध्ययन हैं, जिनमें एक-एक कथा है 1 प्रत्येक कथा के प्रारंभ में पूर्व प्रचलित प्रणाली के अनुसार कथा कहने के स्थान का नाम, बाद में वहाँ के राजा-रानी के नाम, तत्पश्चात् कथा के मुख्य पात्र के स्थान आदि का परिचय देकर कथा का प्रारंभ किया गया है ।
प्रथम श्रुतस्कंध में दस अध्ययनों में क्रमशः मृगापुत्र, उज्झित कुमार अभग्गसेन, शकट, बृहस्पतिदत्त नंदीवर्धन, उदुम्बरदत्त, शौर्यदत्त, देवदत्ता और अंजूश्री की कथाएँ हैं । इन कथाओं में यह बतलाया गया है कि इन लोगों ने पूर्व भव में किस-किस प्रकार से और कैसे-कैसे पाप कर्मों का उपार्जन किया था कि जिससे उन्हें इस भव में इस प्रकार दुःखी होना पड़ा । पाप कर्म करते समय तो अज्ञानतावश जीव प्रसन्न होता है और उसे वे पापकारी कार्य सुखदायी प्रतीत होते हैं किन्तु उनका परिणाम कितना दुःखदायी होता है और जीव को कितने दुःख उठाने पड़ते हैं, इन सब बातों को इन कथाओं में चित्रित किया गया है । कथाओं की पूरी जानकारी के लिए वे कथाएँ पढ़नी चाहिए ।
स्थानांग में दुःख विपाक के दस अध्ययनों के ये नाम दिए हैं - मृगापुत्र, गोत्रास, अण्ड, शकट, माहन, नंदीषेण, शौरिक, उदुंबर, सहसोद्दाह, आमरक और कुमार लिच्छवी । उपलब्ध नाम जो ऊपर बताए हैं, उनमें इन नामों से भिन्नता है । गोत्रास नाम उज्झित के अन्य भव का नाम है । अण्डनाम अभग्गसेन द्वारा पूर्व भव में किए गए अण्डे के व्यापार का सूचक हैं। माहन नाम का संबंध बृहस्पति पुरोहित से है । नंदीषेण नाम नंदीवर्द्धन के स्थान पर प्रयुक्त हुआ है । सहसोद्दाह आमरक का संबंध राजा की माता को तप्तशलाका से मारने वाली देवदत्ता से जुड़ा प्रतीत होता है । कुमार लिच्छवी के स्थान पर उपलब्ध में अंजूश्री नाम है । अंजूश्री के अपने अंतिम भाव में किसी सेठ के यहाँ पुत्र रूप में जन्म ग्रहण करने की घटना का उल्लेख आता है । संभवतः इस घटना को ध्यान में रखकर स्थानांग में कुमार लिच्छवी नाम का प्रयोग किया गया हो । स्थानांग के इस नाम भेद का कारण वाचनान्तर माना जाए, तो कोई असंगति जैसी बात नहीं है ।
दूसरे श्रुतस्कंध सुख विपाक के दस अध्ययनों में संकलित कथाओं के नाम इस प्रकार हैं-सुबाहु, भद्रनन्दी, सुजात, सुवासवकुमार, जिनदास, वैश्रमण कुमार, महाबल, भद्रनन्दी, महच्चन्द्र और वरदत्त । इन व्यक्तियों ने पूर्व जन्म में सुपात्रदान आदि शुभ कार्य किए, जिसके फलस्वरूप वर्तमान जन्म में इन्हें उत्कृष्ट ऋद्धि की प्राप्ति हुई और उन्होंने संसार को परित (हलका सीमित किया ।) ऐसी ऋद्धि का त्याग करके इन सबने संयम अंगीकार किया और मरणोपरान्त देवलोक में गए। आगे मनुष्य भव
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