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और देवभव करके महाविदेह क्षेत्र से मोक्ष प्राप्त करेंगे। पुण्य का फल कितना मधुर और सुखरूप होता है, इसका परिचय इन कथाओं से मिलता है । प्रत्येक सुखाभिलाषी के लिए इन कथाओं का अध्ययन करके शिक्षा व बोध प्राप्त करना आवश्यक है।
इस प्रकार यहाँ उपलब्ध अंग-आगमों का संक्षेप में परिचय दिया गया है। इनमें अनेक ऐसे तथ्य है जो तत्कालीन सामाजिक परिस्थिति, रीति रिवाज, जीवन व्यवस्था आदि पर प्रकाश डालते हैं।
उत्तरवर्ती काल में अनेक आचार्यों ने नियुक्ति भाष्य, चूर्णि, वृत्ति, टीका आदि विधाओं द्वारा इनका रहस्य स्पष्ट करने के लिए प्राकृत संस्कृत में व्याख्या ग्रंथ लिखे हैं तथा वर्तमान में अनेक भारतीय भाषाओं में अनुवाद प्रकाशित हुए हैं । अन्य विदेशी विद्वानों ने भी कुछ आगमों का पाश्चात्य भाषाओं में शोधपूर्ण प्राक्कथन के साथ अनुवाद किया है एवं निबंध लिखे हैं । उनका संक्षिप्त परिचय इस प्रकार है
__डॉ. जेकोबी द्वारा आचारांग अंग्रेजी भाषान्तर सेक्रेड बुक्स ऑफ दी ईस्ट खण्ड २२ में प्रकाशित किया गया है तथा प्रथम श्रुतस्कंध का प्रो. शूबिंग द्वारा किया गया अनुवाद सन् १९१० में लिप्झिंग में प्रकाशित हुआ है। इन दोनों विद्वानों ने अपनी शोधपूर्ण प्रस्तावनाएँ लिखकर इसके बाह्य एवं आन्तर रूप का विशेष परिचय दिया
है।
इसी प्रकार सूत्रकृतांग का अंग्रेजी भाषान्तर डॉ. जेकोबी द्वारा किया गया है, जो उनकी विद्वन्मान्य प्रस्तावना के साथ सेक्रेड बुक्स ऑफ दी ईस्ट खण्ड ३४५ में प्रकट हुआ है। - उपासक दशा को संशोधित करके उसका अंग्रेजी अनुवाद डॉ. ए.एफ. हॉरनेल । ने किया है । उनकी उपयोगी प्रस्तावना एवं टिप्पण तथा अभयदेवसूरि की टीका सहित यह ग्रंथ बिंब्लियोथिका इण्डिका बंगाल कलकत्ता की ओर से सन् १८८५ में प्रकाशित हुआ हैं। ...
अन्तकृद्दशा का एल.डी. बर्नेट द्वारा किया गया अंग्रेजी अनुवाद सन् १९०७ में कलकत्ता से प्रकाशित किया गया है।
. इसी प्रकार अनुत्तरोपपातिक दशा का भी एल.डी. बर्नेट द्वारा किया गया अंग्रेजी अनुवाद सन् १९०७ में प्रकाशित हुआ है।
डॉ. वेबर ने प्रायः प्रत्येक आगम का इण्डियन एपेडिक के विभिन्न अंकों में संक्षेप में परिचय दिया है।
अब आगे के प्रकरण में अंगबाह्य आगमों का परिचय प्रस्तुत करते हैं।
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