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बाह्यअंग से यह आशय झलकता है कि जिनकी प्रामाणिकता लोकव्यवहार से रुढ़ हो, वे अंग बाह्य आगम हैं । जब कि अनंग प्रविष्ट शब्द इस आशय को स्पष्ट करता है कि गणधरों ने जिन सूत्रों की रचना की, वे तो अंगप्रविष्ट आगम हैं और प्रत्येक बुद्ध, श्रुतकेवली, देस पूर्वधर आदि ने जिन आगमों की रचना की, वे अंगों के तात्पर्य को ही व्यक्त करने वाले होने से अंग आगमों से व्यतिरिक्त शेष आगमों के लिए अंगों जितने प्रमाण भूत हैं। हमारी दृष्टि से उनके लिए अनंग प्रवृष्ट शब्द का प्रयोग किया जाना अधिक उपयुक्त है। * आगमों का वर्गीकरण___ पूर्व में बताया गया है कि अंग प्रविष्ट आगमों के नाम व संख्या निश्चित है, लेकिन समय प्रवाह के साथ प्रत्येक बुद्ध, श्रुत केवली, दस पूर्वधर एवं प्रभावक आचार्यों के ग्रंथ भी आगम के रूप में प्रमाण भूत मान लिये गये । उनका सामान्य से अंगबाह्य आगम इस वर्ग में समावेश तो अवश्य कर लिया गया, किन्तु कौन कौन से ग्रंथ ग्रहण किये गये? इसके लिए विभिन्न दृष्टिकोण देखने को मिलते हैं। जैसे कि नंदी सूत्र के अनुसार अंग बाह्य आगमों के भेद-प्रभेद और उनमें ग्रहण किये गये ग्रंथों के नाम इस प्रकार हैं
अंग बाह्य श्रुत के मूल में दो भेद हैं- आवश्यक और आवश्यक व्यतिरिक्त ।
आवश्यक श्रुत सामायिक, चतुर्विंशतिस्तव, वंदना प्रतिक्रमण कायोत्सर्ग और प्रत्याख्यान के भेद से छह प्रकार का है। इसमें साध्वाचार के अवश्य कारणीय क्रिया कलापों का वर्णन है । गुणों के द्वारा आत्मा को वश में करना आवश्यकीय है । ऐसा वर्णन जिसमें हो, उसें आवश्यक श्रुत कहते हैं। ___ आवश्यक व्यतिरिक्त श्रुत दो प्रकार का है- कालिक और उत्कालिक । जिस श्रुत का रात्रि व दिन के प्रथम प्रहर में स्वाध्याय किया जाता है, वह कालिक श्रुत है
और जो निश्चित काल से भी भिन्न काल में पढ़ा जा सकता है, उसे उत्कालिक श्रुत कहते हैं।
उत्कालिक श्रुत के अनेक प्रकार हैं। जैसे- दशवैकालिक, कल्पाकल्प, चुल्कत्थ श्रुत, महाकल्प श्रुत आदि । इसी प्रकार कालिक श्रुत के भी अनेक प्रकार हैं। जैसे- उत्तराध्ययन, दशाश्रुतस्कंध, कल्प, बृहत्कल्प आदि । १. विशेष जानकारी व नामों के लिए नंदीसूत्र पृष्ठ ४४ देखें।
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