________________
कर्म वीर्य । अकर्म व कर्म क्रमशः अप्रमाद-संयम एवं प्रमाद-असंयम के सूचक हैं। बाल वीर्य वाले हिंसा में प्रवृत्त होते हैं और पण्डित वीर्य वाले संयम में । जैसे-जैसे पण्डित वीर्य में वृद्धि होती है, वैसे-वैसे संयम में वृद्धि होने के बाद अन्त में अक्षय सख प्राप्त होता है। पण्डित वीर्य मोक्ष का और बाल वीर्य संसार का कारण है । इस अध्ययन में चूर्णि के अनुसार सत्ताईस और वृत्ति के अनुसार छब्बीस गाथाएँ हैं एवं दोनों की वाचना में भी अन्तर है।
नौवें अध्ययन का नाम धर्म है। इस अध्ययन में लोकोत्तर धर्म (संयम) तथा साधु को किन दोषों से बचना चाहिए, इसका वर्णन किया गया है । श्रमण धर्म के दूषण इस अध्ययन में गिनाए हैं । जैसे असत्य वचन, परिग्रह, अब्रह्मचर्य, चोरी, क्रोध, मान, माया, लोभ, रंजन, भंजन, दंतधावन, विरेचन आदि । आहार व भाषा संबंधी तथा अन्य प्रकार के भी कुछ दूषणों का उल्लेख है । इस अध्ययन में सैंतीस या छत्तीस गाथाएँ
हैं।
दसवें अध्ययन का नाम समाधि है। समाधि का अर्थ है-संतोष, प्रमाद, आनन्द । द्रव्य क्षेत्र, काल भाव की अपेक्षा से समाधि के चार भेद हैं। उनमें से इस अध्ययन में भाव समाधि का वर्णन है कि वह ज्ञान, दर्शन, चारित्र तप समाधि रूप है। समाधि के वर्णन के प्रसंग में यतना के स्वरूप और साधु के कर्तव्य कार्यों का उल्लेख किया है कि सभी प्राणियों के साथ आत्मवत् व्यवहार करना, कायिक प्रवृत्ति में संयम रखना, अदत्त वस्तु का ग्रहण न करना और परिग्रह व कायासक्ति का साधु को त्याग करना चाहिए । एकान्त क्रियावाद व अक्रियावाद को अज्ञानमूलक बताते हुए उनको त्यागने की ओर ध्यान आकर्षित किया है कि दोनों एंकान्तिक मान्यताएँ धर्म व समाधि से दूर हैं । इस अध्ययन में चौबीस गाथाएँ हैं।
ग्यारहवाँ अध्ययन मार्ग है। इसका विषय दसवें समाधि अध्ययन से मिलता-जुलता है । इस पूरे अध्ययन में आहार शुद्धि, सदाचार, संयम, प्राणातिपात विरमण आदि पर प्रकाश डालते हुए बताया है कि प्राणों का मोह न करके इन सबका पालन करना चाहिए । यही मोक्षमार्ग है। इस अध्ययन की अड़तीस गाथाएँ हैं।
___ बारहवाँ अध्ययन समवसरण है। यहाँ समवसरण का अर्थ देवादिकृत समवसरण विवक्षित नहीं है, किन्तु सम्मेलन या एकत्र होना है। प्रस्तुत अध्ययन में विविध प्रकार के मतों, क्रियावादी, अक्रियावादी, अज्ञानवादी और विनयवादी का सम्मेलन किया है। क्रियावादी क्रिया को मानने वाले हैं। आत्मा, कर्म फल आदि मानते हैं। अक्रिया को मानने वाले अक्रियावादी कहलाते हैं। वे आत्मा, कर्मफल आदि का अस्तित्व नहीं मानते । अज्ञान को मानने वाले अज्ञानवादी हैं । वे ज्ञान की
(५४)