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को साधुचर्या का और उसमें आने वाले उपसर्गों के निवारण का निरूपण करने वाला कह सकते हैं।
चतुर्थ अध्ययन का नाम स्त्री परिज्ञा हैं। स्त्री परिज्ञा का अर्थ है-स्त्रियों का स्वभाव का सब तरह से ज्ञान । इस अध्ययन में बताया गया है कि स्त्रियाँ श्रमण को अपने मोहपाश में किस तरह फँसाती है और फिर फंसे हुए श्रमण से अनुचर जैसा व्यवहार करने लगती है। स्त्रियों की निंदा करते हए यहाँ तक कह दिया है कि स्त्रियाँ विश्वसनीय नहीं हैं। मनसा-वाचा-कर्मणा उनकी अन्यथा वृत्ति होती है। साधु को स्त्रियों पर कदापि विश्वास नहीं करना चाहिए। इस विषय में किंचिन्मात्र भी असावधानी रखने से श्रामण्य के नाश की भी संभावना है । इसके दो उद्देशक हैं, जिनमें क्रमशः इकतीस और बाईस गाथाएँ हैं।
पंचम अध्ययन का नाम नरक विभक्ति है। इसमें यह बताया गया है कि स्त्रीकृत उपसर्गों में फँसने वाला नरकगामी बनता है और फिर नरकों में उसे कैसी-कैसी असह्य यातनाएँ भोगनी पड़ती हैं । जो लोग झूठे, हिंसक, चोर, असदाचारी और परिग्रही हैं, उन्हें नरकों में जन्म लेना पड़ता है । अतः कोई भी व्यक्ति हिंसा न करे, अपरिग्रही बने
और निर्लोभवृत्ति धारण करें, यही इस अध्ययन का सारांश है । इसके दो उद्देशक हैं। प्रथम उद्देशक में सत्ताईस और द्वितीय उद्देशक में पच्चीस गाथाएँ हैं। ___छठा अध्ययन वीरस्तव है । इसमें उनतीस गाथाएँ हैं, जिनमें भगवान महावीर की विभिन्न विशेषणों द्वारा आलंकारिक स्तुति की गई है। उनके लिए जो विशेषण प्रयुक्त हुए हैं, वे सार्थक हैं । वे वे शक्तियाँ, गुण आदि उनमें विद्यमान हैं। यह स्तुति प्रशंसात्मक अवश्य है, लेकिन चाटुकारिता से भरी हुई नहीं है।
सातवाँ अध्ययन कुशील विषयक है। कुशील का अर्थ है-अनुचित आचारवाला, अर्थात् असंयमी । जैन परंपरा के अनुसार जिनका आचार नहीं है, ऐसे अधार्मिक कुंशील हैं । इनका वर्णन इस अध्ययन में है । इसमें तीन प्रकार के कशीलों की चर्चा की गई है-१. आहार में मधुरता उत्पन्न करने वाले लवण आदि के त्याग से मोक्ष मानने वाले। २. शीतल जल के सेवन से मोक्ष मानने वाले । ३. होम से मोक्ष मानने वाले। इनकी मान्यता को बताकर खण्डन करते हुए यह प्रतिपादित किया है कि मोक्ष तो राग, द्वेष आदि प्रतिबंधक कारणों का अन्त करने से होता है । इस अध्ययन में तीस गाथाएँ हैं।
आठवाँ अध्ययन वीर्य-पराक्रम विषयक है। इसमें वीर्य-पराक्रम का विवेचन है । सूत्र में वीर्य के दो प्रकार बतलाए हैं–१. अकर्म वीर्य (पंडित वीर्य) और २. कर्म वीर्य (बाल वीर्य) । संयमपरायण वीर्य अकर्म वीर्य है और असंयम परायण
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