________________
संवाद भगवान पार्श्वनाथ के उपदेश से है तथा यह भी शास्त्रों में कहा गया है कि पार्श्वनाथ और महावीर के आध्यात्मिक संदेश में मूलतः कोई भेद नहीं है, कुछ बाह्याचार में भले ही भेद दिखता हो।
पर्व में यह भी संकेत है कि तीर्थंकरों की देशना गणधर सत्रबद्ध करते हैं। अतः प्रस्तुत में भी यही समझ लेना चाहिए कि भगवान महावीर ने जो उपदेश दिया है, उसे गणधर भगवन्तों ने सूत्रबद्ध किया है। इसीलिए अर्थोपदेशक या अर्थ रूप
शास्त्र के कर्ता तो भगवान महावीर और शब्द रूप शास्त्र के कर्ता गणधर भगवंत हैं। - यद्यपि आज जैन परंपरा में शास्त्र के लिए आगम या सूत्र शब्द विशेष रूप से प्रचलित हैं, लेकिन प्राचीन काल में आगम के बजाय श्रुत या सम्यक् श्रुत प्रचलित थे। इसी से आगम केवली या सूत्र केवली के बजाय श्रुत केवली शब्द का प्रयोग देखने में आता है। स्थविरों की गणना में भी श्रुतस्थविर को स्थान मिला है। यह भी श्रुत शब्द की प्राचीनता को सिद्ध करता है । लेकिन इसका आशय यह नहीं है कि आगम शब्द प्रयुक्त ही नहीं होता था। उस समय भी वार्तमानिक परंपरा की तरह आगम शब्द प्रचलित था। जैसे-सुत्तागम, अत्थागम, अत्तागम, अणंतरागम आदि । आचार्य उमा स्वाति की दृष्टि में सिर्फ श्रुत या आगम ही नहीं, किन्तु श्रुत, आप्तवचन, आगम, उपदेश, ऐतिह्य आम्नाय, प्रवचन और जिनवचन ये सभी आगम बोधक पर्यायवाची अपर नाम हैं।
- इस प्रकार आगमों के सांप्रतिक आविर्भाव भूमिका का संकेत करने के अनन्तर अब आगे आगमों के वर्गीकरण व उसके कारण पर विचार करते हैं।
1.Doctrine of the Jainas, Page 29 २. अत्थ भासइ अरहा सुत्तं गथंति गणहरा निउणा। सासणस्स हियट्ठाए तओ सुत्तं पवत्तइ ॥
- आवश्यक नियुक्ति १/९२, धवला भाग १ पृष्ठ ६४,७२ ३. नंदी ४१ ४. स्थानांग सूत्र १५९ ५. अनुयोग द्वार सूत्र १४४ ६. तत्वार्थ भाष्य १/२०