________________
इस बात को सुनते ही सेठ सकुटुम्ब पीछा चला आया, और शोचा कि फिर दूसरे दिन अच्छा शकुन देख कर प्रयाण करूंगा। इधर चौधरी भी आनन्द मनाता हुआ साम को बाजार में आया, तब उसे नकटा देख कर सब लोग उपहास करने लगे और सब जगह वह तिरस्कार दृष्टि से देखा जाने लगा। क्योंकि संसार में अत्यन्त सफाई से बोलकर उद्वेग करने वाला, हास्य से मों का उद्घाटन करने वाला सद्गुणविहीन और गुणीजनों का निन्दक मनुष्य करौती के समान माना जाता है अर्थात् इस प्रकार का मनुष्य किसी का प्रिय नहीं रहता है।
'धन्नूलाल' को निन्दक, मत्सरी, और दुष्टस्वभावी जानकर लोगों ने उसको जातिबाहिर किया, और राजा के द्वारा उस विदेशी सेठ को नगर सेठ की उपाधि से अलंकृत कराया।
___ पाठकवर्ग! मात्सर्य स्वभाव के दोषों को भले प्रकार विचार पूर्वक छोड़ो और अपनी आत्मा को गुणानुरागी बनाओ। यदि गुणसंपन्न होने पर भी दूसरों के गुण का ग्रहण नहीं करोगे तो सर्वत्र तुमको निन्द्य अवस्था प्राप्त होने का अवसर आवेगा और धर्म की योग्यता से पराङ्मुख रहना पड़ेगा। क्योंकि मत्सरी मनुष्य धर्मरत्न की योग्यता से रहित होता है। किन्तु धर्मरत्न के योग्य वही पुरुष है जो निम्नलिखित सद्गुण-संपन्न हो
१, अक्षुद्र-गंभीरबद्धिवाला हो, क्योंकि गंभीर मनुष्य मद मात्सर्य से रहित हो धर्म के वास्तविक स्वरूप को समझकर दुर्गुणों से अपनी आत्मा को बचा सकता है।
२, रूपवान् सर्वाङ्ग सुन्दर मनुष्य धर्म के योग्य होता है, क्योंकि 'यत्राकृतिस्तत्र-गुणाः वसन्ति' अर्थात् जहाँ पर सुन्दर मनोहर आकृति हो वहाँ पर गुण निवास करते हैं। अतएव रूपहीन मनुष्य प्रायः धर्म के योग्य नहीं हो सकता।
कहा भी है कि जिसके हाथ रक्त हों वह धनवन्त, जिसके नीले हों वह मदिरा पीने वाला, जिसके पीले हों वह परस्त्री गमन करने वाला, जिसके काले हों वह निर्धन होता है। और जिसके नख श्वेत हों सो साधु, जिसके हाईसदृश नख हों सो निर्धन, जिसके पीले
१२ श्री गुणानुरागकुलक