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भावार्थ-गौ तृण (घास) खाती है, और अमृत के समान मधुर दूध और छगन (बाणा) देती है, तथा गौ से घर की शोभा होती है, गौ का मूत्र रोगियों के रोगों का नाश करता है, और गौ की पुच्छ कोटियों देवताओं का स्थान समझा जाता है।
गौ का दर्शन भी मंगलकारक है, संसार में प्रायः जितने शुभ कार्य हैं उनमें गौ का दूध, दही और घी सर्वोत्तम है। अतएव निर्गुणी पुरुष गौ के समान क्यों कहा जाय?| तदनन्तर वृषभ का भी पक्ष लेकर कहा
'गुरुशकटधुरन्धरस्तृणाशी,
समविषमेषु च लाङ्कलापकर्षी जगदुपकरणं पवित्रयोनि
नरपशुना किमु मीयते गवेन्द्रः ?।।४।। भावार्थ-वृषभ बड़े-बड़े गाड़ों की धुरा धारण करता है, घास खाता है, सम और विषम भूमि पर हल को खींचता रहता है, खेती करने में तनतोड़ सहायता देता है, अतएव पवित्रयोनि गवेन्द्र के साथ नर पशु की समानता किस प्रकार हो सकती है?
इन सभी पशुओं के गुण सुनकर धनपाल पण्डित ने कहा कि—गुणहीन पुरुषों को जो प्रत्येक वस्तु का सारासार समझने और विचार करने में शून्य हैं उनको ‘मनुष्यरूपेण शुनः स्वरूपाः' मनुष्यरूप से कुत्ते के समान गिनना चाहिये। उस पर फिर प्रतिवाद ने कुत्ते का पक्ष लेकर कहा कि'स्वामिभक्तः सुवैत यः, स्वल्पनिद्रः सदोद्यमी । अल्पसन्तोषोवाक्शूरः, तस्मात्तत्तुल्यता कथम् ? ||५|| ___ भावार्थ जो खाने को देता है उसका कुत्ता भक्त होता है, खटका होते ही जागता है, थोड़ी नींद लेता है, नित्य उद्यमशील है, थोड़ा भोजन मिलने पर भी सन्तोष रखता है, और वचन का शूर वीर है, तो निर्गुणी की तुल्यता कुत्ते से किस तरह की जा सकती है?
कुत्ते जिनके हाथ दान रहित, कान धर्मवचन सुनने से शून्य, मुख असत्योद्गार से अपवित्र, नेत्र साधुदर्शन से रहित, पैर १७८ श्री गुणानुरागकुलक