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लिये हाय हाय करते रहते हैं। संसार के लोग भले ही दुःखी हों पर मेरा अभीष्ट सिद्ध हो इस प्रकार की स्वार्थता बड़ी ही निन्द्य और त्याज्य है।
१७. कोई एक ऐसा स्वार्थ है जिससे तुम लाभ उठा रहे हो और हजारों की हानि हो रही है, वहाँ तुम्हें स्वार्थ त्याग देना ही समुचित है। वह सुख किस काम का जो हजारों के मन में दुःख पहुँचा कर प्राप्त हो। जिनका हृदय उच्च है, जो सब के साथ उच्च प्रेम रखते हैं वे वैसा ही काम करते हैं जिससे हजारों क्या लाखों मनुष्य सुख पाते हैं।
१८. जिनके हृदय में प्रेम और दया नहीं उनके मुँह से प्रायः मधुर वचन नहीं निकलते। प्रेम और दया ही मधुर वाणी का उत्पत्ति स्थान है। जो लोग प्रेमिक और दयालु हैं वे बहुधा भिष्टभाषी होते हैं।
१६. जिनकी अवस्था ऐसी नहीं है जो किसी का विशेष उपकार कर सकें, उन्हें इतना तो अवश्य चाहिये कि दो चार मीठी बातें बोलकर ही दूसरे को आप्यायित (आनन्दित) करें।
20. यदि सच्चा सुख पाने की इच्छा हो, यदि दूसरे के मनोमन्दिर में विहार करना चाहते हो और सारे संसार को अपना बनाना चाहते हो तो अभिमान को छोड़ कर मिलनशील हो मीठी बातें बोलने का अभ्यास करो। मनुष्यों के लिये मधुरभाषण एक वह प्रधान गुण है जिससे संसार के सभी लोग सन्तुष्ट हो सकते हैं, अतएव मनुष्यमात्र को प्रियभाषी होने का प्रयत्न करना चाहिये।
२१. अच्छे मनुष्य नम्रता से ही ऊँचे होते हैं, दूसरे मनुष्यों के गुणों की प्रसिद्धि से अपने गुण प्रसिद्ध करते हैं। दूसरों के कार्यों की सिद्धि करने से अपने कार्यों को सिद्ध करते हैं और कुवाक्यों से बुराई करने वाले दुर्जनों को अपनी क्षमा से ही दूषित करते हैं, ऐसे आश्चर्ययुक्त कामों के करने वाले महात्माओं का संसार में सब आदर किया करते हैं।
२२. दुःखियों की आह सुनकर यदि तुम हँसोगे, और दीन हीन अनाथों की आँखों के आँसू न पोंछ कर घृणा के साथ उनकी उपेक्षा करोगे, तो इस संसार में तुम्हारे आँसू पोंछने कौन आवेगा, और संकट में कौन तुम्हारी सहायता करेगा?
१८८ श्री गुणानुरागकुलक