________________ राष्ट्रसन्त जैनाचार्य श्री जयन्तसेन सूरीश्वर जी 'मधुकर' जिन शासन के सजग प्रहरी, जैन संस्कृति के उद्गाता, राष्ट्रसन्त, अनन्त आस्था के आयाम, अन्तस आलोक से देदीप्यमान मुखमण्डल, उन्नत-प्रशस्त भाल, अन्तर-मेदिनी पारदर्शी दृष्टियुक्त नयन-कमल, मुखरित-प्रज्ञा, अजातशत्रु, क्रान्तदर्शी, अमृत-पुरुष, सौम्यमूर्ति, कीर्ति-कौस्तुभ, संयम-सूर्य, हृदय शिरोमणि, दया-निधान, जीवनशिल्पी, व्यापक विराट ऊर्जास्वल व्यक्तित्व एवं कर्तृत्व के धनी, खादी का श्वेत-शुभ्र परिधान लिए समता एवं समन्वय के मणि-कांचन योग का नाम है-आचार्य श्री जयन्तसेन सूरीश्वरजी म. सा./ आपका अपरिग्रह महाव्रत, उसमें भी सादगी का सहअस्तित्व स्वर्ण में सौरभ के समान है। आपने देश के एक छोर से दूसरे छोर तक अनेक हिन्दी एवं अहिन्दी प्रान्तों की पावनधरा पर अपने चरणचिह्न अंकित करते हुए गाँवों, शहरों तथा महानगरों में सभी वर्ग-वर्ण के भक्तों को अपने कोकिलकण्ठी प्रवचनों से मंत्रमुग्ध करते हुए राष्ट्रीय-कर्तव्यों एवं जीवन-उद्धार के ज्ञान का दान मुक्तहस्त प्रदान किया है। अनेक भाषाओं के ज्ञाता आचार्यश्री ने साहित्य एवं काव्य की अनेक विधाओं में विपुल साहित्य सृजित कर साहित्याकाश में ध्रुव तारे सम अपनी शाश्वत ओजस्वी पहचान कायम की है। ___आपको वैराग्यशील आत्माओं ने परोपकारी गुरु-भगवन्त, बुजुर्गों ने अपने आत्म-उत्थान के आराध्य, युवाओं ने अपने जीवन के मार्ग-प्रशस्ता, प्रौढ़ों ने अपना हृदय-शिरोमणि, समाज ने अपने मुकुट के रत्नमणि, परिचितों ने सच्चे कल्याण-मित्र तथा एक बड़े प्रशंसक वर्ग ने बहुमुखी प्रतिभाओं के प्रकाश-पुंज के रूप में स्वीकार किया है। हर आयु-वर्ग के व्यक्तियों की लालसा आपके दर्शन-वन्दन करने की रहती है। आपके प्रति विश्वास की भावना से हर वर्ग अनुप्राणित है। उसे उसके अनुसार सही जीवन-दर्शन प्राप्त होता है।