Book Title: Gunanuragkulak
Author(s): Jinharshgani, Yatindrasuri, Jayantsensuri
Publisher: Raj Rajendra Prakashak Trust

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Page 196
________________ पद को प्राप्त करता है जो अपनी असफलताओं को सफलता की सीढ़ी बनाते हैं, जो प्रत्येक बाह्यावस्थाओं को अपना दास बना लेते हैं, जो दृढ़ता से विचार करते हैं, निर्भय होकर यत्न करते हैं और विजयी की भांति कदम बढ़ाते हैं । ३०. सावधानी और धैर्यपूर्वक अभ्यास करने से शारीरिक निर्बलता वाला मनुष्य अपने को बलवान् कर सकता है और निर्बल विचारों का मनुष्य ठीक-ठीक विचार करने के अभ्यास से अपने विचारों को सबल बना सकता है। ३१. जिसे साधारण उद्देश्यों में सफलता प्राप्त करनी है उसे साधारण स्वार्थों का ही त्याग करना होगा और जिसे महान् उद्देश्यों में सफलता प्राप्त करनी है उसे महान् स्वार्थों का त्याग करना होगा । जितना ऊँचा चढ़ना है उतनी ही ऊँची सीढ़ी की आवश्यकता है, और जितनी उन्नति करनी है उतना ही निःस्वार्थी बनना होगा । ३२. नम्रता और क्षमा के विचारों से मनुष्य नम्र और दयावान बन जाता है जिससे उसकी बाह्यावस्थाएँ उसकी रक्षक और पोषक बन जाती हैं। प्रेम और निःस्वार्थता के विचारों से मनुष्य दूसरों के लिये अपने को विस्मरण कर देता है जिससे उसकी बाह्यावस्थाएँ ऋद्धि और सच्चे धन की उत्पादक हो जाती हैं। ३३. प्रकृति प्रत्येक मनुष्य को उसकी उन इच्छाओं की पूर्ति में सहायता देती है जिसको वह अपने अन्तःकरण में सब से अधिक उत्साहित करता है, और ऐसे अवसर मिलते हैं जो शीघ्र ही उसके भले या बुरे विचारों को संसार में सम्मुख उपस्थित करते हैं। ३४. जब मनुष्य धन को चाहता है तो उसको कितना आत्म-संयम और परिश्रम करना पड़ता है ? तो विचारना चाहिए कि उस मनुष्य को कितना अधिक आत्मसंयम करना पड़ेगा जो दृढ़, शान्त और ज्ञान मय जीवन की इच्छा करता है। ३५. विचार जो निर्भयता के साथ उद्देश्य से जोड़े जाते हैं बड़ी भारी उत्पादक शक्ति रखते हैं। वह मनुष्य जो इस बात को जानता है शीघ्र ही बलवान्, श्रेष्ठ और यशस्वी हो जाता है। वह फिर चञ्चल विचार वाला अस्थिर आवेश और मिथ्या संकल्प विकल्पों का पुतला नहीं रहता, वह मनुष्य जो इस भाँति उद्देश्य को पकड़ १६० श्री गुणानुरागकुलक

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