Book Title: Gunanuragkulak
Author(s): Jinharshgani, Yatindrasuri, Jayantsensuri
Publisher: Raj Rajendra Prakashak Trust

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Page 151
________________ करने वाला पुरुष उत्तम योग्यता प्राप्त कर सकता है। जिस पुरुष के दिन त्रिवर्गशून्य व्यतीत होते हैं वह लुहार की धमनी की तरह गमनागमन करता हुआ भी जीता नहीं है अर्थात् उसे जीवन्मृत अथवा पशुतुल्य समझना चाहिये। धर्म पुण्यलक्षण अथवा संज्ञानरूप है, पुण्यलक्षण धर्म संज्ञानलक्षण धर्म का कारण है, कार्य को उत्पन्न कर, कारण चाहे पृथक् हो जाय, परन्तु धर्म सात कुल को पवित्र करता है। कहा भी है कि'धर्मः श्रुतोऽपि दृष्टो वा, कृतो वा कारितोऽपि वा । अनुमोदितोऽपि राजेन्द्र ! पुनात्याऽऽसप्तं कुलम् ।।9।।' तात्पर्य हे राजेन्द्र ! सुना हुआ, देखा हुआ, किया हुआ, कराया हुआ और अनुमोदन किया हुआ धर्म, सात कुल को पवित्र बनाता है। धर्म धन, काम और मुक्ति का देने वाला है, ऐसी कोई वस्तु नहीं है जो धर्म के प्रभाव से प्राप्त न हो सके; अतएव तीनों वर्ग में धर्म अग्रगण्य (मुख्य) समझा जाता है। यहाँ पर यह संशय होना संभव है कि वारंवार त्रिवर्ग का ही नाम आता है किन्त चौथा वर्ग मोक्ष या निर्वाण का तो नाम ही नहीं लिया जाता, तो क्या आप मोक्ष को नहीं मानते ?। इसके समाधान में समझना चाहिए कि मोक्ष, निर्वाण अथवा मुक्ति आदि नाम से प्रख्यात चतुर्थ वर्ग के साधक मुनिवर हैं, और यहाँ प्रस्तुत विषय तो गृहस्थों को धर्म की योग्यता प्राप्त कराने का है, इसी से यहाँ पर मोक्ष का नाम दृष्टिपथ नहीं होता। जैन सिद्धान्तों में जितनी क्रिया प्रतिपादन की गई हैं वह सब मोक्षसाधक हैं, स्वर्गादिक तो उसके अवान्तर फल हैं। जैसे कोई मनुष्य किसी शहर का उद्देश्य करके रवाना हुआ, परन्तु वह इच्छित शहर में नहीं पहुंचने से मार्ग स्थित गाँव में रह गया। इसी प्रकार मोक्ष साधक मनुष्य भी मार्गभूत स्वर्गादि गतियों में जाता है। जिन लोगों के सिद्धान्त में मोक्ष साधक अनुष्ठान नहीं है उनको अवश्य नास्तिक समझना चाहिए। मोक्ष का कारण सम्यग् ज्ञान, दर्शन और चारित्र है, इनको प्राप्त करने के लिए प्रथम योग्यता प्राप्त करने की आवश्यकता है। योग्यता का कारण भूत धर्म, अर्थ और काम रूप श्री गुणानुरागकुलक १४५

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