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वर्तमान समय में सद्गुणी पुरुष कम हैं, इसलिए पूर्वोक्त सभी गुण नहीं मिलना यह स्वाभाविक है, परन्तु जिसमें अल्प गुण भी दीख पड़े उसका बहुमान करना करना चाहिए। यही उपदेश ग्रन्थकार देते हैं
*संपइ दूसमसमए, दीसइ थोवो वि जस्स धम्मगुणो
बहुमाणो कायव्वो, तस्स सया धम्मबुद्धीए।।२५|| शब्दार्थ-(संपइ) इस (दूसमसमए) पंचमकाल में (थोवो) थोड़ा (वि) भी (जस्स) जिस पुरुष का (धम्मगुणो) धार्मिक गुण (दीसइ) दीख पड़ता है (तस्स) उसका (बहुमाणो) बहुमान—आदर (सया) निरन्तर (धम्मबुद्धीए) धर्मबुद्धि से (कायचो) करना चाहिए।
___ भावार्थ-वर्तमान समय में जिस मनुष्य में थोड़े भी धार्मिक गुण दीख पड़ें, तो उनकी धार्मिक बुद्धि से निरन्तर बहुमान पूर्वक प्रशंसा करनी चाहिए।
_ विवेचन तीर्थंकर और गणधर सदृश स्वावलम्बी, कालिकाचार्य जैसे सत्यप्रिय, स्थूलभद्र, जम्बूस्वामी और विजयकुँवर जैसे ब्रह्मचारी, सिद्धसेन, वादिदेव, यशोविजय और आनन्दघन जैसे अध्यात्मतार्किकशिरोमणि, हेमचन्द्र आदि के सदृश संस्कृतसाहित्य प्रेमी, और धन्ना, शालिभद्र, गजसुकुमाल आदि महिमाशाली महर्षियों के सदृश तपस्वी सहनशील आदि सद्गुणों से सुशोभित प्रायः वर्तमान में कोई नहीं दीख पड़ता, तथापि इस समय में भी आदर्श पुरुषों का सर्वथा लोप नहीं है, आज कल भी अनेक सद्गुणी पुरुष विद्यमान हैं, हाँ इतना तो माना जा सकता है कि पूर्व समय की अपेक्षा इस समय न्यूनता तो अवश्य है।
अतएव इस दुःषम समय में जिस पुरुष में अल्प भी गुण हो तो उसकी हृदय से प्रशंसा करना चाहिये, क्योंकि प्रशंसा से मानसिक दशा पवित्र रहती है, और सद्गुणों की प्रभा बढ़ती है। *संप्रति दुःषमसमये, दृश्यते स्तोकोऽपि यस्य धर्मगुणः ।
बहुमानः कर्तव्य-स्तस्य सदा धर्मबुद्ध्या ।।२।। १७० श्री गुणानुरागकुलक