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और उतना ही अधिक उसका प्रभाव भी बढ़ेगा तथा उतनी ही अधिक उसको भलाई करने की शक्ति होगी।'
चरित्रसंगठन में भी कहा है कि
'जो लोग मधुर वचन बोलते हैं और जो उसे सुनते हैं, दोनों ही के हृदय में शान्ति सुख प्राप्त होता है, मन में पवित्र भाव का उदय होता है, तथा आत्मा तृप्त होती है।
मधुरभाषी लोग सबके प्यारे होते हैं, और जहाँ मीठी बातें बोली जाती हैं वहाँ की हवा मधुमय हो जाती है। इसलिये एक मधुरभाषी व्यक्ति सैकड़ों के सुख का कारण होता है तथा मधुर वचन के सुनने वाला दुःख, शोक, शोच, विषाद की सभी बातें को भूल जाता है।'
अतएव स्वधर्म के सत्य मन्तव्य प्रकाशित करने या दूसरों को समझाने में शान्ति और मधुरशब्दों को अग्रगण्य बनाना चाहिये और किसी की भी निन्दा नहीं करना चाहिये। समाजी या गच्छों के प्रतिष्ठित पुरुषों के गुणों की प्रशंसा ही निरन्तर करना चाहिये, किन्तु उनके साधारण दोषों पर दृष्टिपात करना अच्छा नहीं है। जो मन में गर्व नहीं रखते, और किसी की निन्दा नहीं करते, तथा कठोर वचन नहीं कहते, प्रत्युत दूसरों की कही हुई अप्रिय बात को सह लेते हैं, और क्रोध का प्रसंग आने पर भी जो क्रोध नहीं करते तथा दूसरों को दोषी देखकर भी उनके दोष को न उधाड़ कर यथासाध्य उन्हें दोष रहित करने की चेष्टा करते हुए स्वयं द्वेषजनक मार्ग से दूर रहते हैं, वे पुरुष अवश्य अपना और दूसरों का सुधार कर सकते हैं, और उन्हीं से धार्मिक व सामाजिक उन्नति भले प्रकार हो सकती है। इसलिये स्वगच्छ या परगच्छ स्थित गुणी मुनिजनों को प्रेम दृष्टि से देखते रहो, जिससे आत्मा पवित्र बने।
गुणों के बहुमान से गुणों की सुलभता
*गुणरयणमंडियाणं,
बहुमाणं जो करेइ सुद्धमणो। * गुणरत्नमण्डितानां, बहुमानं यः करोति शुद्धमनाः । सुलभा अन्यभवे च, तस्य गुणा भवन्ति नियमेन । ।२७।।
श्री गुणानुरागकुलक १७५