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भगवान् नेमिनाथस्वामी, श्रीजम्बूस्वामी, श्रीकूर्मापुत्र, आदि अनेक महात्मा दुर्जय कामदेव को पराजय कर सर्वोत्तमोत्तम पद को अलंकृत करने वाले हुए हैं, और जिन्होंने ब्रह्मचर्यरूपी कर्पूरसुगन्धि से सारे संसार को सुवासित कर दिया और अनेक भव्यों को भवाम्बुधि से पारकर शाश्वत सुख का भागी बनाया । इत्यादि अनेक दृष्टान्त शास्त्रों में उपलब्ध होते हैं, परन्तु यहाँ पर केवल एक विजयकुँवर और विजयाकुँवरी का आश्चर्यजनक दृष्टान्त लिखा जाता है।
विजय और विजयासर्वदेशशिरोमणि 'कच्छ' देश में 'कौशाम्बी' नामक प्रख्यात और सत्ताईस वकारों से सुशोभित नगरी में धर्मपरायण 'अर्हद्दास' नामक सेठ रहता था, उसके सती कुलशिरोमणि 'अर्हद्दासी' नामक स्त्री थी, उन दोनों के बीच में अनेक मनोरथों से त्रिभुवन में आश्चर्योत्पादक और विनयादिसद्गुणगणालङकृत 'विजय' नामक पुत्ररत्न हुआ। वह अभ्यास के योग्य होने पर धर्माचार्य के पास पढ़ने लगा। एक समय धर्माचार्य ने कहा कि
* वापीवप्रविहारवर्णवनिता वाग्मी वनं वाटिका, विद्वद्ब्राह्मणवादिवारिबिबुधा वेश्या वणिग्वाहिनी । विद्यावीरविवेकवित्तविनया वाचंयमो वल्लिका, यस्मिन् वारणवाजिवस्त्रविषया राज्यं तु तच्छोभते । । १ । ।
भावार्थ-राज्य निम्न लिखित सत्ताईस वकारादि शब्दवाच्य पदार्थों से साङ्गोपाङ्गभूषित होकर शोभित होता है— अर्थात् वापी (बावड़ी ) १, वप्र ( प्राकार) २, विहार (चैत्य ) ३, वर्ण ( शुक्लनीलादि दृश्य ) ४, वनिता ( सामान्यस्त्री) ५, वाग्मी (वावदूक - वाचाल ) ६, वन (अरण्य) ७, वाटिका (उद्यान - फुलवाई) ८, विद्वान् (पण्डित) ६, ब्राह्मण (ब्रह्मनिष्ठ) १०, वादी (वाद करने में कुशल) ११, वारि (जल) १२, बिबुध (देवता) १३, वेश्या ( वाराङ्गना) १४, वणिग् ( बानिया) १५, वाहिनी (सेना, अथवा नदी) १६, विद्या ( कला कौशल) १७, वीर ( शूर) १८, विवेक ( सत्यासत्य का विचार) १६, चित्त (धन) २०, विनय (नम्रता ) २१, वाचंयम (साधु) २२ वल्लिका (लताएँ) २३, वारण ( हस्ती) २४, बाजी (घोड़ा) २५, वस्त्र (पट) २६, और विषय (इन्द्रियभोग ) २७ ।
११६ श्री गुणानुरागकुलक