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शास्त्रकारों ने इस विषय में क्रोधफलसंदर्शक अनेक दृष्टान्त दिये हैं। जैसे 'अच्चंकारी भट्ठा' ने क्रोध के सबब से नाना दुःखों का अनुभव कितना किया है ?* कल्पसूत्र जो प्रत्येक वर्ष पर्युषण महापर्व में बाँचा जाता है, उसमें भी प्रत्यक्ष एक चण्डकौशिक, का दृष्टान्त दीख पड़ता है, जो कि पूर्वभव में एक क्षुल्लक के ऊपर क्रोध करने से ही मर कर अतिनिकृष्ट तिर्यञ्चयोनिक सर्पजाति में उत्पन्न हुआ"| इत्यादि आख्यानों का मनन करने से साफ जाहिर होता है कि क्रोध का फल कितना दुःखप्रद और निन्दनीय है अतः सज्जन महानुभावो! क्रोध को छोड़ो और क्षमा रूप महागुण को धारण करो, क्योंकि क्षमा से जो कार्य सिद्ध होता है वह क्रोध से नहीं, इसमें कारण यह है कि संपूर्ण कार्य को पार लगाने वाली बुद्धि क्रोध के प्रसंग से नष्ट हो जाती है। इसलिये क्रोध को छोड़ कर सर्वाङ सुन्दर क्षमागुण का अवलंबन करना चाहिये जिससे अनेक सद्गुणों की प्राप्ति हो।
मान कषायमानी मनुष्य के अन्दर विद्या, विनय, विवेक, शील, संयम, सन्तोष आदि उत्तम गुणों का नाश होता है।
प्राप्त हुई वस्तुओं से अहंकार करने को मद, और बिना संपत्ति के ही केवल अहंकार रखने को मान कहते हैं। ___मद आठ हैं-१ जातिमद–मातृ पक्ष का अहंकार करना, मेरी माता बड़े घराने की है, दूसरों की माता का तो कुछ ठिकाना नहीं है। २ कुलमद-पितृपक्ष का अभिमान रखना, हमारा पितृ पक्ष उत्तम राजवंशी है; दूसरों का कुल तो नीच है। ३ बलमद-अपने को जो सामर्थ्य याने पराक्रम मिला है उसकी प्रशंसा करे और दूसरों को घास-फूस के समान समझे। ४ रूपमद सर्वाङ्ग सुन्दर सुरम्य रूप पाकर मन में समझे कि मेरे समान संसार में रूप सौभाग्य दूसरे किसी को नहीं मिला है। ५ ज्ञानमद अनेक प्रकार की विद्याओं को सीख कर या षट्दर्शनों के सिद्धान्तों के पारगामी हो कर मन में विचारे कि मेरा पराजय कौन कर सकता है, मैंने सब पण्डित-समूहों का मद उतार दिया है मेरे सामने सब लोग बेवकूफ * देखो अभिधानराजेन्द्र कोष के पहिले भाग का १८१ पृष्ठ। ** और चौथे भाग का वीर शब्द।
८४ श्री गुणानुरागकुलक